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-8॥ अथ श्री आगम त्रीशी॥
॥ ढाळ पेहेलो ॥ चोपाइ छंद.॥ सुहगुरु चरणकमळ प्रणमेसुं, प्रवचन गुण हुँ केवि कहेसुं ॥ श्रुत वीजक जोइ जाणोये, | नाम ग्रंथ संख्या आणिये. ॥१॥ आगे जिणवर गणधर काल, आगम हूंता अति सुविशाल ॥ | मुनिने मुखपाठे आवता, खिण खिण दीगग ते खीजता. ॥२॥ पंचमकाल तणे परमाण, विद्यावंत तणी बहु हाण ॥ देवढिगणिए जाणि करी, श्रुतरागे शुन्न मति मन धरी. ॥ ३॥ हिवमां एक पंचम अरो, दसम अरो वलि उत्तरो ॥ नस्मक ग्रह महिमा गहगहे, ढुंमाअवसर्पिणि तिह वहे ॥४॥ सदा काल संततो मिथ्यात, पंच मलि ए करस्ये घात ॥ त्रिजुवनतारक जिन मत | तणो, आगम तेहनो उठनणो ॥ ५॥ आगम समरथ सुख दातार, आगम तीरथनो आधार ॥ आगम जामलि को नहीं, आगम महिमा मोटी कही ॥६॥ श्री जिन आगमने आधार,
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