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रहे रहे दिन च्यार, आगम अक्षर, अक्षर मुखहि न उचरेए ॥ नावे सनामजार, । बिवश न कांश्य, लाज का श्रति घणी करे ए ॥ ३०॥ समूहिम नरवाण, चजदह थानक, पनवणे जिन उचरे ए, तेहनी उतपति जाणी, जयणा निय मन, नियम निरतिशुं खप करे ए; श्रोरालिय दस जेद, बोलिय गांग, असकाइ ते टालवी ए॥ वळी वखाणे बेद, आप इसी जिम, जननी जिननी पालवी ए|३१| सूत्र तणो व्यवहार, जिपवर नाखिय, साखिय जाणो शिवतणो ए ॥ त्रिभुवननो आधार, एह म विराधो, साधो स्वास्थ आपणो ए ॥ होशे मूरख कोइ, कुमतियें नंकित, कुरु पंकित जाखशे ए ॥
दुषण नतु कोइ, आ किसीपर, सूत्र विराधक राखसे ए ॥ ३२॥ ग्रंथे जाख्यो दोष, मुनिवर जिनवर, प्रतिमा श्रगल नहु फिरे ए ॥ नाणे मन संतोष, इसे न बोल ए, वाचा संवर बहु करे ए ॥ निंदे गरहे आप संचालि स्वामिय, पानिय शासन ताहरो ए ॥ केके पमियो पाप, संयम तपविणु, काल निफल ए माहरो ए ॥ ३३ ॥ जंगम तीरथ साधु, विहग तणीपरे, विहरत श्रव्या कोइ कहे ए ॥ ए मोटो अपराध, काल विलंबण, नारी वंदेवा लहे ए ॥ एणे अवसरे मुज होय, मरण कि