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________________ Sad दीपिका 90saermom ॥४६ /98089904/smsww पर तरो ॥३॥ देह संबंध तिय गारवा परिहरी, नाविय नावना अशुचिनी मनधरी ॥ बार जे || सु० दी० श्रोत्र ते बार तनु मल अवे, देह नारीतणो शौच ते केम हुवे ॥२४॥ मंस पेसी जीसी जुवई जो| खम घणी, संखगुण नरथकी नारी आगम नणी ॥ पापनी राश बहु वास आवी मले, स्त्रीतको | वेद सुद दतो संपळे ॥२५॥ कर्मबले महबले सबल माया करी, तित्थकर रूप नृपकुनघर || अवतरी॥ पुत्रिका मलि ए गरुष अछेर, जश् पण स्त्रीपणो एह नढेर ॥ २६ ॥ पूर्वला मित्र बह परणवा बाविया, अशुचि तनु दाखवी परमपद गविया ॥ हरि प्रत्ये दीकरी दासी थाशं कहे, वसिहि कोलीतणे पमिय परिनव लहे ॥२॥ इणिपरे नारि अवधार परवस सदा, | विरह वली वरतणे प्रगट परमापदा ॥ जाण एम टाल ऋतुकाल श्रासातना, श्रुततणी तुम नणी न हुए नवयातना ॥२॥ उहा ॥ असा सजाय जे, नणे गुणंत सुणंत ॥ ते नारी बहु नव जमे, श्री पार्श्वचं पत्नयंत ॥रणा ढालदिऊढीनी॥ जाणीय पुष्प प्रवाह, अवसर अवसर, संनारे त्रिजुवन धणी ए॥ इंश्ये धरे बहु दाह, धिगु धिगु नारीय, नारिय कमें जिन नणी ए॥ sawana/DDOODape/amasme/sBapana
SR No.600329
Book TitleSurdipikadi Prakaran Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPurvacharyadi, Mangaldas Lalubhai
PublisherMangaldas Lalubhai
Publication Year1913
Total Pages412
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size29 MB
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