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________________ ParvanesamvowerPowereamuRATHIVARNEWateway | पत्नणंत ॥ गीयच वयण श्रावय सुणंत॥ जेम साहु तेम साहुणि विचार, वेदंतरि अंतर इणे प्रकार | ॥१६॥ पर्याये बहुमो जेय जोय, मुनि साहुणिने वंदेवो होय ॥ नहु बेद पुत्व वांचे नणे, आयस्थि || | मुखे विधिशुं सुणे ॥१७॥ साहुणी प्रवर लखणाहि नाण, ए विधि जाणे विच्छेद गण॥ तेह पम्वो | चम्बो कर्मदोस, ए वचन म मुखसि रागि रोस ॥१०॥ आगम विधि लोपी धर्मदाण, ए वचन सहु | करजो प्रमाण ॥ श्री आगम नमतां हुए आणंद, कर जोमी पत्नणे श्री पार्श्वचं ॥ १५ ॥ ढाल ॥ | सनिलो शीख हवे उत्तम श्राविया, पुन्य संयोगे नव मानुष्ये आविया ॥ दसह दृष्टांतहि जनम | | ए दोहिलो, कर्मवशे तुमने ए थयो सोहिलो ॥२०॥ तत्थ वली थारिय खेत्त उत्तम कुलं, जा | रुवाइ सयलंपि अति निम्मलं ॥ साहु साहुणि सामग्री पामी करो, देव गुरु धर्म अशम्म निय | मन खरो ॥२१॥ दंसण नाण चारित्त रयणत्तयं, आगम परख करी परख दिढ बद्धयं ॥ वळीय कर || बुट्टते कत्थ पाविऊ ए, पुग्गला संख मणुयत्त जाणिक ए॥॥ जाणिए अंतरो म कर मन पंतरो, | दाखव्यो आगमे एह पटतरो ।। शुद्ध सम्मत्त मिच्चत्त जुअ जुब करो, पाली सम्मत्त संसार सा Am/ama/ARDamanoraemom/ e a M aNe/m
SR No.600329
Book TitleSurdipikadi Prakaran Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPurvacharyadi, Mangaldas Lalubhai
PublisherMangaldas Lalubhai
Publication Year1913
Total Pages412
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size29 MB
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