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सुर
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Mamvasanawwar AGRATREMEDARO/ARum/awam.ww.ar/RED/AROO
वारे, तो जश्ये निःसंबलाए।एह ध्यान जसु होइ दिन दिन दीप, चमतीचमतीत सुकला ए॥३४॥ | परदरसणे पण साख, ऋतु विण मैथुन, जे नर सेवा नितु करे ए॥ब्रह्मघात तसु दाखी, जे ए अवगुण, | | नारी नहु निज तन धरे ए ॥ तो न होय ब्रह्महाणी, कश्ये पण किमे, कीधां कर्म न बुटियें ए| ॥ एक तप संयम प्राणी, श्रुत आराधन, साधन शिवसुख पामी ए॥३५॥ ढाल काव्यनी ॥ श्री वीतराग तुम शासन ए सुचंग, सिद्धांत आराधन धर्म रंग ॥ टालंत श्राशातन दोषनारी, ते मुक्ति पामे नरवृंद नारी ॥३६॥ जिनेनी वाणी सुधा समाणी, नरेंद्र देवेंज सहु वखाणी ॥ हुँ। विनवं जोमी बेबेवि हाथ, होजो सदा श्री अरिहंत नाथ ॥३॥ प्रनात उठी सुणीये तमारी, वाणी तणा नाव दिये विचारी ॥ तहत्ति जाणी जिन आण पालुं, संसार संचार अपार टालुं ॥३०॥ | "कलश" इम दोष जाणी दिये आणी श्रृत आशातन टालशे॥जिन नाम निर्मल सलिल पामी पापपंक पखालशे। जिन वचने राचो कहे साचो श्री पार्श्वचंद्र कृपा लही। गुरुतणीय सुको नविय बुझो रिद्धिसिद्धि लहो सही॥ ३५॥ इति श्री सिद्धांताराधनकोनचत्वारिंशतिका ॥
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