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सुर दीपिका
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पाय परि- निव्वाण मादिपसुय- देवकज्जेसुय देवसमुदयस्य देवसमितीसुय देवसमवा एस्य देवपडणेय एगंत उसहिया समुवा गया समाजा पमुदित पक्कीलिया अठ्ठाहियाउ महामहिमाउ कारेमाणा पालेमाणा सुहंसुहेण विहरंति.
अर्थ:-तहां घणा भवनपति, वाणत्रंतर, ज्योतिस, वैमानिक देवता चौमासी पडिवाने विषे, संवच्छरीने विषे, बीजा वली तीर्थकरना जन्मना, वळी दीक्षा लेवानी वेलाये, बळी ज्ञान उपजती वेलाये, निर्वाण (मोक्ष) जवानी वेलाये ए आदि देने वेलाये, देवता संबंधी कार्य वेलाये, देवताना मेलावे, देवताना समूह मिलेथके, देवतानुं प्रयोजन, सर्व देवता एकठा थवानुं प्रयोजन उत्पन्न थये छते, एकठां थयाथका, एक समुदाय थयाथका, हर्षवंत थयाथका, क्रीडावंत थयाथका, अष्टाहिकादिक मोटा मोटा महामहिमावंत उत्सव करताथका, सुखे समाधिये विचरे छे.
जिनवर प्रतिमा पूजी नमी, पुव्वि पन्छा ए पद जणी ॥ हित सुख निःश्रेयस श्रणुगाम, सुर अधिकार बिहूने ठाम ॥ ७१ ॥
जिनेश्वर परमात्मानी प्रतिमाने देवताओए “ पुत्रि " अने " पच्छा " ए वे शब्द करी पूजा करी नमन कर्यु, ते शा वास्ते ? हितने वास्ते, सुखने वास्ते, कल्याणने वास्ते, अनुक्रमे मोक्ष मेळववाने वास्ते. आ हकीकत- सूत्रमां देवताओना अधिकारमां लखेल छे. एवी रीते सूत्रोमां सम्यक्दृष्टि अने देशविरति ए बेउना अधिकारमां सरखा पाठ छे.
सु० दी०
।।४० ॥