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________________ Vasas/APae/amue/aERVaseDow ॥श्री रायपसेणी सूत्रमा आ प्रमाणे कडु के के-- ॥ ___ अम्हेणं भंते ! सूरियाभस्स देवस्स आभिओगिया देवा देवाणुप्पियं वंदामो णमंसामो सक्कारेमो समाणेमो कल्लाणं मंगलं देवयं पज्जुवासामो देवाइ समणे भगवं महावीरे-तेदेवे एवंवयासी जुत्तमेयंदेवा पोराणमेयंदेवा जीयमेयंदेवा किच्चमेयंदेवा करणिज्जमेयंदेवा आइनमेयंदेवा अप्मणुनायमेयंदेवा जण्णं भुवणवइ, वाणमंतर, जोइस वेमाणियादेवा अरहंते भगवंते वंदंति, णमंसंति, वंदिता णमंसित्ता तओ साइं२ नाम गोत्ताई साहंति तं पौराणमेयंदेवा जावअभणुनाय मेयंदेवा. इति हे भगवन् ! अमे सूर्याभदेवना आभियोगिक देवताओ छीए, आपसाहेब पति अमे वंदन करीए छीए, नमस्कार करीए छीए, सत्कार करीए छीए, सन्मान करीए छीए; कल्याणना हेतु, मंगलना हेतु, इष्टदेव अने चित्तनी निर्मलतानां कारण एहवा आपसाहेव ते प्रते अमो पर्युपासना करीए छीए. भगवान् कहे छे के हे देवा! हे देवानुपिय! युक्त छे, आतमारी करणी युक्त छे, हे देवानुपिय! आ करणी कांह नवी नथी, पण पुरव कालथी छे, एटले चिरंतन कालथी तोर्थकर मते देवेकडे करायेली के जे माटे भवनपति, वाणवंतर, ज्योतषी अने विमानवासी देवताओ अरिहंत भगवंतने वांदे, नमस्कार करे, वंदन नमस्कार करीने पोतपोताना नाम गोत्रने कहे छे. माटे आ करणी तमारी पेहेलानी छे, वळी आजीत छे. वळी हे देवानुपिय! आ कृत्य छे, करवा योग्य छे, वळी आ वंदन, नमन, सत्कार, सन्मान, तीर्थकर प्रति आचीर्ण छे, तथा अभ्यनुज्ञात छे एटले Dow/op/eewams/D9/0/09/ODo/4 /DBenera
SR No.600329
Book TitleSurdipikadi Prakaran Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPurvacharyadi, Mangaldas Lalubhai
PublisherMangaldas Lalubhai
Publication Year1913
Total Pages412
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size29 MB
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