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________________ BravasaNDasaramilavanasaootoaawrantee घणोज लाभ थाय छे ते माटे हुं जाउं, पणभगवान् महावीरस्वामीने वंदन करूं, नमस्कार करूं, सत्कार करु, सन्मान करूं; भगवान् केदा छे, के जेओ कल्याणकारी, मंगलकारी, इष्ट देवरूप, चित्तने प्रसन्नताना हेतुरूप एवा भगवान् छे, ते प्रते जा पर्युपासना करुं आ करणी मने परभवमां हितभणी, सुखभणी, निरुपद्रवभणी, छेवट मोक्षभणी यशे, एप विचार करे. अहिं भी महावीरस्वामीने बंदन नमस्कार करवानुं फल सूर्याभदेवे जे मनमांहे चिंतव्यु ते फल साधु श्रावकने सद्दहवा योग्य छे, कारण के सम्पदृष्टिदेवे बोलेलुं धर्मर्नु फल डाह्या मनुष्योए उपादेय ( अंगीकार ) करवा योग्य छे. तेमज बळी श्री भगवतीमूत्र मध्ये इन्द्रमहाराज विचार करे छे के, चमर अनुरेंद्र अनुरराजा अरिहंत वा अरिहंत चैत्य (जिनबिंब ) अथवा भावित-आत्मा कोइपण मुनि तेनुं शरण लीधा विना अहीं आची शके नहीं, माटे रखेने कोइनी आशातना थाय एम विचारी जल्दी अवधिज्ञानथी जाणी, भगवान्थी चार आंगुल दूर रहेल बनने पकडी इत्यादि आलापक छे ते तिहाथी जाणी लेवं. इहां कोई वादी एम कहे छे जे देवलोकमांही प्रतिमा छे तेनुं शरण केम लीधु नहीं ? उत्तर के महाविदेहक्षेत्रने विषे पण तीर्थंकरभगवान् विचरे छे तिहां जइ शरण केम लीधुं नहि. माटे एवो खोटो तर्क करवायी काइ आत्मकल्याण थवान नथी. ए आलापकने विषे पण चैत्यशन्दे जिनपतिमा जाणवी, अने जीवाभिगम सूत्रमादि देवताना अधिकारे जिन प्रवचन प्रतिमानी भक्तिनो विधिवाद कह्यो छे, ते नीचे मुजवः-तत्थणं वहवे भवणवह वाणमंतर जोतिस वेमाणिया देवा चाउमासिय पडिवएम संवत्छरेसुय अण्णेमुय बहुजिण-जम्मण-निरूखमण-णाणु Swamama/saoonm/aAONDOREAD/Era
SR No.600329
Book TitleSurdipikadi Prakaran Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPurvacharyadi, Mangaldas Lalubhai
PublisherMangaldas Lalubhai
Publication Year1913
Total Pages412
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size29 MB
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