________________
सुर
दीपिका
॥ ३४ ॥
बळी जे स्वलिंगी एटले जिनेश्वरे कहेला साधुना उपकरण तेने धारे के छतां दर्शन- सम्यक्त्व तेथी पडेला ते हे भगवन् ! क्यों उपजे ? उत्तर - जघन्यथी भवनवासीनिकायमां उपजे अने उत्कृष्टथी उपरला ग्रैवेयकमां उपजे. एवी रीतनोज आलावा पण श्री भगवती सूत्रमां छे, ते गुरुमहाराज पासे पुछी जाणवुं सर्वविरतिने पालण करनारा छतां पण आणा रहीत एटले सम्यक्ज्ञान अने दर्शन रहित होवाथी मिध्यात्वी तथा बाल कीधेल छे ते निश्वेनयनी व्याख्या जाणवी. विशेष खुलास गीतार्थ पासेधी समजवो.
देस वितरित गति एक, उत्कृष्टी बारम सुरलोक ॥ समकित विरति किस् तरो बोलो टाली मन पांतरो ॥ ६७ ॥
देशविरति सम्यकदृष्टि अने अविरति सम्यकदृष्टि ए बनेनी गति एक उत्कृष्टि बारमा देवलोक सुधीनी कही छे, तेनो पाठ पनवणाना छठा पद मध्ये छे, तथा च तत्पाठः- जदिसम्मदिट्ठी पज्जत संखेज्ज वासाज्य कम्मभूमि गन्भवकंतिय मणुस्सेहिंतो उववज्जंति किं संजयसम्मदिठ्ठी पज्जत्तएहिंतो असंजयसम्मदिद्वी पज्जत्तएहिंतो संजयासं जयसम्मदिठ्ठी पज्जत संखेज्जेहिंतो उदवज्जति ? गोयमा ! तिहितोवि उववज्र्ज्जति, एवं जाव अच्युगोकप्पो.
अर्थ :- जो सम्यकदृष्टि पर्याप्ता संख्याता वरसना आउखावाळा जो कर्मभूमि गर्भजमनुष्यथी उपजे तो श्युं संजत सम्यकदृष्टि पर्याप्तायी उपजे ? के असंजत सम्यकदृष्टि पर्याप्ताथि उपजे ? के संजता संजत जे देशविरति तेनाथी उपजे ?
सु० दी०
॥ ३४ ॥