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________________ VanamamaeevanewsVEReautawaharasvam | विचारजो, विचारीने सारी रीते हृदयमा धारजो, कुमतिने वारजो अने देष म आणजो. श्रमण मिथ्याति बालज हुँत, यद्यपि सर्वविरति पालंत ॥ नवमा अवेयक लग जंत, पन्न-|| | वणा नगवश्य नणंत ॥ ६६ ॥ श्रमण एटले साधु (मुनि) सर्वज्ञ परूपेल सर्वविरति मुनिधर्म सर्वथा विरति परिणामला पालन करतो होप छनौ पण सम्यक्ज्ञान दर्शनथी रहीत होय, सदहणा परूपणा शुद्ध न होयते द्रव्यलिंगी साधु मिथ्यावो कहेवाय, अने ते दालन कदेवाय छे. __ते जो के सर्वविरति पाले छे, उग्र कष्ट करेछे तेथी नवमा अवेयक सुधी जायछे तेनो पाठ श्रीपन प्रणासूम तथा श्री भगवतीसूत्रमा कहेलो छे. ते आ प्रमाणे-अविराहियसंजमासंजमाणं जहण्णंसोहम्मकप्पे उक्कोसेणं अच्चुए, सलिंगीणं दंसण बावनगाणं जहण्णेणं भवणवासीसु उक्कोसेणंउवरिम गेवेज्जएसु. अर्थ:-अविराधक एहवा संजतासंजत एटले देवाधिदेवे जे भाव गुणने रीते परुप्या ते पदार्थने तेज प्रमाणे श्रदा| वाळा, अने जे देशवितिमार्ग धर्म तेनुज नाम संजतासंजत छे, ते धर्मपति फर्शना, पालना, तीर, विशोधि निःशल्य यह ते श्रावकर्मि क्या उपजे, कई गतिमां जाय ? उत्तर. जघन्यथी सौधर्मदेवलोक प्रथम स्वर्गमा, अने उत्कृष्टयी चारमा अच्युत देवलोकमां जाय. Meamvamvamama/awaraavaDASHIANDI -
SR No.600329
Book TitleSurdipikadi Prakaran Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPurvacharyadi, Mangaldas Lalubhai
PublisherMangaldas Lalubhai
Publication Year1913
Total Pages412
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size29 MB
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