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श्रीउत्तराध्ययनसूत्रे श्रीनेमिचन्द्रीया सुखबोधा
ख्या लघुवृत्तिः । ॥ ३७७ ॥
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व्याख्या - स्पष्टम् | नवरम् — 'अन्तरं' विवक्षितक्षेत्राऽवस्थितेः प्रच्युतानां पुनस्तत्प्राप्तेर्व्यवधानम् ॥ १४ ॥ एतान्येव |भावतोऽभिधातुमाह
वण्णओ गंधओ चेव, रसओ फासओ तहा। संठाणओ य विष्णेओ, परिणामो तेसि पंचहा ॥ १५ ॥ वण्णओ परिणया जे उ, पंचहा ते पकित्तिया । किव्हा नीला य लोहिया, हालिद्दा सुक्किला तहा १६ गंधओ परिणया जे उ, दुविहा ते वियाहिया । सुभिगंधपरिणामा, दुभिगंधा तहेव य ॥१७॥ रसओ परिणया जे उ, पंचहा ते पकित्तिया । तित्त कड्डय कसाया, अंबिला महुरा तहा ॥१८॥ फासओ परिणया जे उ, अट्ठहा ते पकित्तिया । कक्खडा मउया चेव, गुरुया लहुया तहा ॥ १९ ॥ सीया उण्हाय निद्धा य, तहा लुक्खा य आहिया । इति फासपरिणया, एए पुग्गला समुदाहिया २० संठाणपरिणया जे उ, पंचहा ते पकित्तिया । परिमंडला य वहा य, तंसा चउरंसमायया ॥ २१ ॥ वण्णओ जे भवे किण्हे, भइए से उ गंधओ । रसओ फासओ चेव, भइए संठाणओ वि य ॥ २२ ॥ वन्नओ जे भवे नीले, भइए से उ गंधओ । रसओ फासओ चेव, भइए संठाणओ वि य ॥ २३॥ वन्नओ लोहिए जे उ, भइए से उ गंधओ । रसओ फासओ चेव, भइए संठाणओ वि य ॥२४॥ वन्नओ पीअए जे उ, भइए से उ गंधओ । रसओ फासओ चैव भइए संठाणओ वि य ॥ २५ ॥ वन्नओ सुकिले जे उ, भइए से उ गंधओ । रसओ फासओ चेव, भइए संठाणओ विय ॥२६॥ गंधओ जे भवे सुभी, भइए से उ वन्नओ । रसओ फासओ चेव, भइए संठाणओ वि य ॥२७॥ गंधओ जे भवे दुब्भी, भइए से उ वन्नओ । रसओ फासओ चेव, भइए संठाणओ वि य ॥२८॥
षटूत्रिंशं जीवाजीव
विभक्ति
नामकम
ध्ययनम् ।
भावतो
रूप्यजीव
प्ररूपणा ।
॥ ३७७ ॥