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________________ प्रमादस्य | स्थानानि । सद्दे अतित्ते य परिग्गहम्मि, सत्तोवसत्तो न उवेह तुहि। अतुहिदोसेण दुही परस्स, लोभाविले आययई अदत्तं ॥४२॥ तण्हाभिभूयस्स अदत्तहारिणो, सद्दे अतित्तस्स परिग्गहे य । मायामुसं बड्वइ लोभदोसा, तत्थावि दुक्खा न विमुचई से ॥४३ ॥ मोसस्स पच्छा य पुरत्थओ य, पओगकाले य दुही दुरंते। . एवं अदत्ताणि समाययंतो, सद्दे अतित्तो दुहिओ अणिस्सो॥४४॥ सद्दाणुरत्तस्स नरस्स एवं, कत्तो सुहं हुन्ज कयाइ किंचि । । तत्थोवभोगे वि किलेसदुक्खं, निवत्तए जस्स कए न दुक्खं ॥४५॥ एमेव सम्मि गओ पओसं, उवेइ दुक्खोहपरंपराओ। पउडचित्तो य चिणेइ कम्म, जं से पुणो होइ दुहं विवागे ॥४६॥ सद्दे विरत्तो मणुओ विसोगो, एएण दुक्खोहपरंपरेण । । न लिप्पई भवमझे वि संतो, जलेण वा पुक्खरिणीपलासं॥४७॥ घाणस्स गंधं गहणं वयंति, तं रागहेउं समणुन्नमाहु । तं दोसहेउं अमणुन्नमाहु, समो य जो तेसु स वीयरागो॥४८॥ गंधस्स घाणं गहणं वयंति, घाणस्स गंधं गहणं वयंति । रागस्स हेउं समणुन्नमाहु, दोसस्स हेउं अमणुन्नमाहु॥४९॥
SR No.600327
Book TitleSukhbodhakhya Vruttiyutani Yttaradhyayanani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUmangsuri, Nemichandrasuri
PublisherPushpchandra Kshemchandra
Publication Year1937
Total Pages798
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript & agam_uttaradhyayan
File Size21 MB
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