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प्रमादस्य स्थानानि ।
एगतरत्तो रुइरंसि रूवे, अतालिसे से कुणई पओसं। दुक्खस्स संपीलमुवेइ बाले, न लिप्पई तेण मुणी विरागे ॥२६॥ रूवाणुगासाणुगए य जीवे, चराचरे हिंसइ गरूवे। चित्तेहिं ते परियावेइ बाले, पीलेइ अत्तट्ट गुरू किलिडे ॥ २७॥ रूवाणुवाए ण परिग्गहेण, उप्पायणे रक्खणसन्निओगे। बए विओगे य कहं मुहं से, संभोगकाले य अतित्तिलाभे ॥२८॥ रूवे अतित्ते अपरिग्गहम्मि, सत्तोवसत्तो न उवे तुहि। अतुट्टिदोसेण दुही परस्स, लोभाविले आययई अदत्तं ॥ २९॥ तण्हाभिभूयस्स अदत्तहारिणो, रूवे अतित्तस्स परिग्गहे य। मायामुसं वहइ लोभदोसा, तत्थाऽवि दुक्खा न विमुच्चई से ॥ ३०॥ मोसस्स पच्छा य पुरत्थओ य, पओगकाले य दुही दुरंते। एवं अदत्ताणि समायअंतो, रूवे अतित्तो दुहिओ अणिस्सो॥३१॥ रूवाणुरत्तस्स नरस्स एवं, कत्तो सुहं होज कयाइ किंचि?। तत्थोवभोगे वि किलेसदुक्खं, निव्वत्तई जस्स कए ण दुक्खं ॥ ३२॥ एमेव रूवम्मि गओ पओसं, उवेइ दुक्खोहपरंपराओ। पउहचित्तो अ चिणाई कम्मं, जं से पुणो होइ दुहं विवागे॥ ३३ ॥