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________________ श्रीउत्तराध्ययनसूत्रे श्रीनेमिचन्द्रीया सुखबोधाख्या लघुवृत्तिः । विंशतितम महानिर्गसन्थीयाख्यमध्ययनम्। अनाथिनिम्रन्थस्य वक्तव्यता। ॥२७॥ XX8XOXEXXXXXXXXX पोल्लेव मुट्ठी जह से असारे, अयंतिए कूडकहावणे वा। राढामणी वेरुलियप्पगासे, अमहग्घए होइ य जाणएसु॥४२॥ कुसीललिंग इह धारइत्ता, इसिज्झयं जीविय व्हइत्ता। असंजए संजय लप्पमाणे, विणिघायमागच्छह से चिरं पि॥४३॥ विसं पिवित्ता जह कालकूडं, हणाइ सत्थं जह कुग्गहीयं । एसेव धम्मो विसओववण्णो, हणाइ वेयाल इवाविवण्णो ॥४४॥ जे लक्खणं सुविण पउंजमाणे, निमित्तकोऊहलसंपगाढे। कुहेडविज्जासवदारजीवी, न गच्छई सरणं तम्मि काले ॥४५॥ तमंतमेणेव उ से असीले, सया दुही विप्परियासुवेइ।। संधावई नरगतिरिक्खजोणी, मोणं विराहेत्तु असाहरूवे ॥४६॥ उद्देसियं कीयगडं नियागं, न मुंचती किंचि अणेसणिज्जं । अग्गी विवा सबभक्खी भवित्ता, इओ चुए गच्छइ कह पावं ॥४७॥ न तं अरी कंठछेत्ता करेति, जं से करे अप्पणिया दुरप्पा। से नाहिती मचुमुहं तु पत्ते, पच्छाणुतावेण दयाविहूणे ॥४८॥ निरद्विया णग्गरुई उ तस्स, जे उत्तिम? विवजासमेति । इमे वि से नत्थि परे वि लोगे, दुहओ वि से झिज्झइ तत्थ लोए॥४९॥ ॥२७॥
SR No.600327
Book TitleSukhbodhakhya Vruttiyutani Yttaradhyayanani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUmangsuri, Nemichandrasuri
PublisherPushpchandra Kshemchandra
Publication Year1937
Total Pages798
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript & agam_uttaradhyayan
File Size21 MB
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