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- विपुल - वट्ट - वग्घारिय - मल्लदाम - कलावं, पंचवण्ण - सरस - सुरहि- ह - मुक्क - पुप्फ- पुंजोवयारकलिअं, कालागुरु- पवरकुंदुरुक्क - तुरुक्क - उज्झंत-धूव-मघमघंत-गंधुडुयाभिरामं, सुगंधवर-गंधिअं, गंधवट्टि -भूअं, नडनट्टग- जल्ल- मल्ल - मुट्ठिय - वेलंबग - कहग - पाढग - लासगआरक्खग-लंख–मंख-तूणइल्ल - तुंबवीणिय - अणेग - तालायराणुचरिअं करेह कारवेह, करिता कारवित्ता य जूयसहस्सं मुसलसहस्सं च उस्सवेह, उस्सवित्ता मम एयमाणत्तियं पच्चपिणेह ॥ सू. १०० ॥ तर णं ते कोडुंबियपुरिसा सिद्धत्थेणं रण्णा एवं वृत्ता समाणा हट्टतुट्ठ जाव हिया करयल जाव पडिणित्ता खिप्पामेव कुंडपुरे नगरे चारगसोहणं जाव उस्सवित्ता जेणेव सिद्धत्थे राया तेणेव उवागच्छंति, उवागच्छित्ता करयल जाव कट्टु सिद्धत्थस्स खत्तियस्स रण्णो एयमाणत्तियं पञ्चपिणंति ॥ सू. १०१ ॥ तए णं से सिद्धत्थे राया जेणेव अट्टणसाला तेंणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता जाव सव्वोरोहेणं, सव्वपुप्फ-गंध-वत्थ - मल्लालंकार - विभूसाए, सव्व–तुडिअ सद्द–निनाएणं, महया इड्डीए, महया जुईए, महया बलेणं, महया वाहणेणं, महया