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________________ - पाढगाणं गेहाई तेणेव उवागच्छंति, उवागच्छित्ता सुविण - लक्खण - पाढए सद्दाविति ॥सू. ६६ ॥ तणं ते सुविण - लक्खण - पाढगा सिद्धत्थस्स खत्तियस्स कोडुंबिअ - पुरिसेहिं सद्दाविया समाणा हट्टतुट्ट जाव हियया, व्हाया, कयबलिकम्मा, कयकोउय - मंगल - पायच्छित्ता, सुद्धप्पावेसाई मंगलाई स्थाई पराई परिहिआ, अप्पमहग्घा -भरणालंकिय - सरीरा, सिद्धत्थय - हरिआलिया -कयमंगल - मुद्दाणा, सएहिं सएहिं गेहेहिंतो निग्गच्छंति, निग्गच्छित्ता खत्तियकुंडग्गामं नगरं मज्झं मज्झेणं जेणेव सिद्धत्थस्स रण्णो भवण - वरवडिंग - पडिदुवारे तेणेव उवागच्छंति, उवागच्छित्ता भवण - वरवडिंसग - पडिदुवारे एगयओ मिलंति, मिलित्ता जेणेव बाहिरिया उवद्वाणसाला जेणेव सिद्धत्थे वत्तिए तेणेव उवागच्छंति, उवागच्छित्ता करयल जाव अंजलिं कट्टु सिद्धत्थं खत्तियं जणं विजएणं वद्धाविति ॥सू. ६७॥ तए णं ते सुविण - लक्खण - पाढगा सिद्धत्थेणं रणा वंदि - अ - पूइअ - सक्कारिअ - सम्माणि समाणा पत्तेअं पत्तेअं पुव्वन्नत्थेसु भद्दासणेसु निसीयंति ॥ सू. ६८ ॥ तए णं सिद्धत्थे खत्तिए तिसलं खत्तियाणि जवणिअंतरियं ठावेइ, ठावित्ता पुप्फ-फल
SR No.600323
Book TitleKalpsutram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhadrabahuswami
PublisherBarsasutra PRakashan Samiti
Publication Year1980
Total Pages206
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript & agam_kalpsutra
File Size15 MB
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