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कल्प० बारसा
| खीरोय-सायरं सारय-रयणिकर-सोमवयणा ११ ॥सू. ४३॥
तओ पुणो तरुण-सूर-मंडल-समप्पहं, दिप्पमाण-सोहं, उत्तमकंचण-महामणि-समूह-18 पवर-तेय-अट्ठसहस्स-दिप्पंत-नहप्पईवं, कणगपयर-लंबमाण-मुत्तासमुज्जलं, जलंत-दिव्वदाम, 18| ॥१६॥ ईहामिग-उसभ-तुरग-नर-मगर-विहग-वालग-किंनर-रुरु-सरभ-चमर-संसत्त-कुंजर-वणलय-पउम| लय-भत्तिचित्तं, गंधव्योपवज्जमाण-संपुन्नघोसं, निच्चं सजल-घण-विउल-जलहर-गज्जिय-सद्दा
णुनाइणा देवदुंदुहि-महारवेणं सयलमवि जीवलोयं पूरयंतं, कालागुरु-पवरकुंदुरुक्क-तुरुक्क|डझंत-धूव-वासंग-मघमघंत-गंधु आभिरामं, निच्चालो, सेयं, सेयप्पभ, सुरवराभिरामं : | पिच्छइ सा साओवभोगं, विमाण-वरपुंडरीयं १२ ॥सू. ४४॥
तओ पुणो पुलग-वेरिंद-नील-सासग-कक्केयण-लोहियक्ख-मरगय-मसारगल्ल-पवाल-फलिह। सोगंधिय-हंसगब्भ-अंजण-चंदप्पह-वररयणेहिं महियल-पइट्ठियं गगण-मंडलंतंपभासयंतं, तुंगं, | मेरुगिरि-सन्निगासं पिच्छइ सा रयण-निकर-रासिं १३ ॥ सू . ४५॥
ॐॐAARRIOR