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तओ-पुणो-रवि-किरण-तरुण-बोहिय-सहरसपत्त-सुरभितर-पिंजरजलं, जलचर-पहकर-परिहत्थग-मच्छ-परिमुज्जमाण - जल-संचयं, महंतं जलंतमिव कमल - कुवलय - उप्पल-तामरसपुंडरीय - उरु – सप्पमाण-सिरि-समुदणं रमणिज्ज - रूवसोहं, पमुइयंत - भमरगण - मत्त - महुय - रिगणुक्करोल्लि -ज्झमाण-कमलं, (ग्रं. २५०) कायंबग-बलाहय- चक्क - कलहंस-सारस-गव्विय-सउण गण - मिहुण - सेविज्जमाण-सलिलं, पउमिणि - पत्तोवलग्ग - जलबिंदु - निचयचित्तं पिच्छइ सा हिअय- नयणकंतं परमसरं नाम सरं, सररुहाभिरामं १० ॥ ४२ ॥
तओ पुणो चंदकिरण- रासि - सरिस - सिरिवच्छ-सोहं, चउगमण-पवद्धमाण- जल-संचयंचवल–चंचलुच्चायप्पमाण - कल्लोल - लोलंत - तोयं, पडु-पवणाहय - चलिय - चवल - पागड - तरंग - रंगंत-भंग-खोखुब्भमाणसोभंत - निम्मल - उक्कड - उम्मी - सहसंबंध - धावमाणोनियत्त-भासुरतराभिरामं, महामगरमच्छ – तिमि - तिमिंगिल - निरुद्धतिलितिलिया-भिघाय-कप्पूर-फेणपसरं, महानईतुरिय- वेग-समागयभम-गंगावत्त- गुप्पमाणुच्चलंत-पच्चोनियत्त - भममाण - लोल-सलिलं पिच्छइ