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________________ ६ अत्थेगइयाणं एवं वुत्तपुर्व भवइ, 'दावे भंते! पडिगाहे भंते!', एवं से कप्पइ दावित्तए वि पडि गाहित्तए वि ॥सू. १६॥ वासावासं पज्जोसवियाणं नो कप्पइ निग्गंथाण वा निग्गंथीण वा हट्ठाणं तुट्ठाणं आरोग्गाणं बलियसरीराणं इमाओ नव रसविगईओ अभिक्खणं अभिक्खणं आहारित्तए, तं जहा-खीरं १, दहिं २, नवणीयं ३, सप्पिं ४, तिलं ५, गुडं ६, महुं ७, मज्ज ८, मंसं ९॥सू. १७॥ वासावासं पज्जोसवियाणं अत्थेगइयाणं एवं वुत्तपुव्वं भवइ, अटो भंते ! | | गिलाणस्स? से य वएज्जा-अट्ठो, से अ पुच्छियव्वे-केवइएणं अट्ठो ? से वएज्जा-एवइएणं अट्ठो* | गिलाणस्स, जं से पमाणं वयइ से य पमाणओ चित्तव्वे, से य विन्नविज्जा, से य विन्नवेमाणे लभिज्जा,* से य पमाणपत्ते होउ अलाहि, इय वत्तव्वं सिआ, से किमाहु भंते ! ?, एवइएणं अट्ठो गिलाणस्स, * | सिया णं एवं वयंतं परो वइज्जा-'पडिगाहेह अज्जो ! पच्छा तुमं भोक्खसि वा पाहिसिवा', एवं | से कप्पइ पडिगाहित्तए, नो से कप्पइ गिलाणनीसाए पडिगाहित्तए ॥सू. १८॥ वासावासं पज्जोसवियाणं अत्थि णं थेराणं तहप्पगाराइं कुलाई कडाइं पत्तियाई थिज्जाइं वेसासियाई सम्म
SR No.600323
Book TitleKalpsutram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhadrabahuswami
PublisherBarsasutra PRakashan Samiti
Publication Year1980
Total Pages206
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript & agam_kalpsutra
File Size15 MB
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