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________________ नवाङ्गी१० वृ० भीज्ञाताधर्मकथाङ्गे ॥४७॥ निकळ्यो अने सहस्राम्बवन नामना उद्यानमा अशोकवृक्ष नीचे शिबिका उतारी, अरहामल्लीए सर्व अलंकार उतार्या अने पंचमुष्टि लोच दि परि०५ कयों यावत् णमोत्थुण सिद्धाणं कही सर्वसामायिकने उच्चयु. ( अत्र पण वीरप्रभुनी जेम जाणवू ) आ समये तेओने चोथु मनःपर्याय- alk-श्रीमल्लीज्ञान उत्पन्न थयु, मल्लीअरहाए जे हेमन्तऋतुनो बीजो मास चोथु पखवाडीयुं एटले पोषसुदिमां अगीआरसना दीने अश्विनी नक्षत्रनो अध्ययनयोग आव्ये छते पूर्वाहकालना समये दीक्षा ग्रहण करी, त्रणसों स्त्रीओनी अभ्यन्तरपर्षदा, अने त्रणसो पुरुषोनी बाह्यपर्षदाए तेमनी सारांश साथे दीक्षा लीधी हती, त्यारबाद आठ राजकुमारोए दीक्षा लीधी, अरहामल्लीने तेज दिवसे पूर्वावरण्यकालसमये अनंत एवं केवलज्ञानदर्शन उत्पन्न थयु. त्यारबाद जितशत्रू वगेरे छए राजाए संयम ग्रहण कर्यु, कुम्भराजार श्रावकधर्म अंगीकार को. अरहामल्लीने भिषग् वगेरे अठ्ठावीस गणधरो, चोत्रीसहजार श्रमणी, बंधुमति वगेरे पंचावनहजार साध्वीओ, एकलाखचौरासीहजार श्रमणोपासको, त्रणलाखपांसठहजार श्रमणोपासिका, सोलसो चौदपुर्वीओ, बेहजार अवधिज्ञानीओ अने बत्रीसो केवलज्ञानीओनी संपदा हती. ____ अरहामल्ली समेतशैलशिखरविषे पादोपगमनयुक्त, सो वर्ष गृहस्थावस्था अने चोपनहजारनवसो वर्षनो केवलिपर्याय एम करी पंचावनहजारवें संपूर्ण आयुष्य करी उनाळानो प्रथममास बीजुं पखवाडीउं एटले चैत्रसुदिनी चोथनी रात्रिविषे भरणिनक्षत्र आव्ये छते मध्यरात्रिए पांचसो स्त्रीओनी अभ्यन्तरपर्षदा अने पांचसो अणगारोनी बाह्यपर्षदा सहित मासना उपवास करी मोक्षे सीधाव्या (अत्र निर्वाण महिमा वीरप्रभुनी जेम जाणवो) श्रमणभगवन्तमहावीरे कहेल ज्ञातासूत्रना आठमा अध्ययननो सारांश परम पूज्य आचार्यदेव श्रीचन्द्रसागरमरिजीनी पुण्यनिश्राए शुभ आशीर्वाद पामी वेरावळबन्दरे मुनिश्रीचन्दनसागरे वि. सं. २००८ पोषवदी द्वितीयावासरे समाप्त कर्यो. ॥ एवं ज्ञातासूत्र धर्मकथाले प्रथमविभागस्य अष्टाध्ययनस्य सारांश समाप्तः ॥ ॥४७॥ SALESEARCANARAS
SR No.600322
Book TitleGnata Dharmkathangam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandrasagarsuri
PublisherSiddhchakra Sahitya Pracharak Samiti
Publication Year1951
Total Pages440
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript & agam_gyatadharmkatha
File Size32 MB
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