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________________ NAAGRA असोकवणिकाविषे एक अनेकस्तम्भवाळु मोहनधर कराव्यु अने तेना मध्यभागमा छगर्मघर कराव्यां, ते मोहनधरना मुख्य दरवा| जानी नजीक मोहनघरमा एक मणीपीठिका रचीने ते उपर पोताना सरखा रूप लावण्यवाळी योवनअवस्थाए दीपती मस्तकना भागमा छिद्रवाळी अने उपर सुन्दर कमलोना ढंकणवाळी प्रतिमा करी, ते प्रतिमाना पोलाणमां उपरथी हमेशा सुन्दर एवो आहार नांखी ढंकण बंध करे छे. ज्यारे ज्यारे आहार नाखवा ढांकण खोले छे त्यारे त्यारे मरेलासर्पकरतां पण अनिष्ट गंध नीकले छे. ।१ प्रतिबुद्धि । (१) कौशलदेशविषे साकेत नामनी नगरी छे, त्या प्रतिबुद्धि नामनो इक्ष्वाकुराजा राज्य करता हता, पद्मावती नामनी राणी अने सुबुद्धी नामनो प्रधान हतो. नागपूजानो दिवस आध्ये छते स्वपति प्रतिबुद्धराजाने पद्मादेवी राणीए विनंती करी के-हे स्वामी ! काले नागपूजानो दिवस छे तो आपनी आज्ञाथी त्यां महोत्सवमां आपनी साथे जवा इच्छुछु, राजाए तेनी विनंतिनो स्वीकार कर्यो अने महोत्सवने वधु दीपाचवा माटे अने आववा माटे कुटुम्बिओने जणाव्युं, अने मालीने जणाव्यु के-पंचवर्णना पुष्पोनो अति शोभावाळो दडो अने विविधपकारना चित्रोथी आश्चर्ययुक्त पुष्पनो मंडपने तुं बनाव ! मालीए पण राजानी आज्ञा प्रमाणे बधुंये तैयार कयु. नगरनी अंदर अने वहार सारी रीते विभूषा करावी, प्रतिबुद्धिराजा तथा पद्मावतीराणी सपरिवार अति पवित्र थई आडम्बरसह नागमन्दिरे पधार्या. त्यां योग्य रीते पुजा बिगेरे करी पुष्पमंडपमां पधार्या त्यारे मालिए बनावेलो अतिशोभायुक्त पुष्पनो दडो राणीनो जोई आश्चर्यमय बनेल राजाए प्रधानने पूछ्यु के-हे प्रधानजी ! आ राणीना दडा सरखो कोई जगोए तमे दडो जोयो छे ! प्रधाने उत्तर आपतां जणाब्यु । के-हे राजन् ! हुं ज्यारे आपनी आज्ञाथी-दूतपणाथी मिथिलानगरीए गयो हतो त्यारे कुंभकराजानी पूत्री मल्लीनी पासे जे दडो में ACARECRes
SR No.600322
Book TitleGnata Dharmkathangam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandrasagarsuri
PublisherSiddhchakra Sahitya Pracharak Samiti
Publication Year1951
Total Pages440
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript & agam_gyatadharmkatha
File Size32 MB
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