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________________ % विशेषाव०४ कोव्याचार्य है वृत्ती चतुर्थों निहवः ॥६९६॥ ॥६९६॥ बीसा दो वाससया तइया सिद्धिं गयस्स वीरस्स । सामुच्छेइयदिही मिहिलपुरीए समुप्पन्ना ॥२८८९॥ मिहिलाए लच्छिघरे महगिरि कोडिन आसमित्ते य । नेउणियणुप्पवाए रायगिहे खंडरक्खा य ॥२८९०॥ नेउणमणुप्पवाए अहिजओ वत्थुमासमित्तस्स। एगसमयाइवोच्छेयसुत्तओ नासपडिवत्ती ॥२८९१॥ उप्पायाणंतरओ सव्वं चिय सव्वहा विणासित्ति । गुरुवयणमेगनयमयमेयं मिच्छ न सव्दमयं ॥२८९२।। न हि सव्वहा विणासो अद्धापज्जायमेत्तनासम्मि । सपरप्पज्जायाणंतधम्मणो वत्थुणो जुत्तो ॥२८९३॥ अह सुत्ताउत्ति मई सुत्ते नणु सासयंपि निद्दिढे । वत्थु दव्वट्ठाए असासयं पजवट्ठाए ॥२८९४॥ एत्थऽवि न सव्वनासो समयाइविसेसणं जओअभिहियं । इहरा न सव्वनासे समयाइविसेसणं जुत्तं ॥२८९५॥ को पढमसमयनारगनासे बितिसमयनारगो नाम । न सुरोघडो अभावोव होइ जइ सव्वहा नासो॥२८९६।। अहव समाणुप्पत्ती समाणसंताणओ मई होजा। को सव्वहा विणासे संताणो? किं व सामण्णं ? ॥२८९७॥ संताणिणो न भिण्णो जइ संताणो न नाम संताणो। अह भिण्णो न क्खणिओ खणिओवा जइन संताणो॥ पुव्वाणुगमे समया होजन सा सव्वहा विणासम्मि । अहसान सव्वनासो तेण स वा नणु खपुष्कं ॥२८९९।। अण्णविणासे अण्णं जइ सरिसं होइ होउ तेलोक्कं । तदसंबद्धं व मई सोऽविकओ सम्बनासम्मि?॥२९००॥ किह वा सव्वं खणियं विण्णायं? जइ मई सुयाउत्ति। तदसंखसमयसुत्तत्थगहणपरिणामओ जुत्तं ॥२९०१।। न उ पइसमयविणासे जेणेकेकक्खरं चिय पयस्स। संखाई यसमइयं संखिजाई पयं ताई ॥२९०२॥ ERRORS50-5000-50105%
SR No.600321
Book TitleVisheshavashyak Bhashyam Uttararddh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinbhadra Gani Kshamashraman
PublisherRushabhdev Keshrimal Shwetambar Samstha
Publication Year1937
Total Pages496
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript & agam_aavashyak
File Size40 MB
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