________________ विशेषाव०४ कोट्याचार्य निर्गमे श्रीऋषभदेववक्तव्यता // 448 // // 448 // लेहं लिवीविहाणं जिणेण भीए दाहिणकरेणं / गणिय संखाणं सुंदरीए वामेण उवइ8 // 1633 // भरहस्स रूवकम्मं नरादिलक्खणमवोइयं बलिणो। माणुम्माणवमाणं पमाण गणिमादिवत्थूणं // 1634 // मणिमादी दोराइसु पोता तह सागरंमि वहणाई / ववहारो लेहवर्ण कलपरिच्छेदणत्थं वा // 1635 // णीई हक्काराई सत्तविहा अहव सामभेदादी / जुदाई बाहुजुद्धाइयाइं वद्याइयाणं च // 1636 // ईसत्थं धणुवेदो उवासणा मंसुकम्ममादी य / गुरुरायादीणं वा उवासणा पज्जुवासणया // 1637 // रोगहरणं तिगिच्छा अत्थागमसत्थमत्थसत्थंति / निगलादिजमो बंधो घाओ दंडादितालणया // 1638|| मारणया जीववहो जण्णा णागाइयाण पूया उ / इंदादिमहा पायं पइनियया ऊसवा होति // 1639 / / समवायो गोट्ठीणं गामादीणं व संपसारो वा। तह मंगलाई सोस्थियसुवन्नसिद्धत्थया दोणि // 1640 // पुव्वं कयाइं गुरुणो सुरेहिं रक्खादिकोउयाइं च। तह वत्थगंधमल्लालंकारा केसभूसा य // 1641 // तं दळूण पवत्तो लंकारेउं जणोवि सेसोवि / विहिणा चूलाकम्मं, बालाणं चोलयं नाम // 1642 / / उवणयणं तु कलाणं गुरुमूलं साहुणो तओ धम्मं / घेत्तुं हवंति सड्डा केई दिक्खं पवनंति // 1643 // दटुं कयं विवाहं जिणस्स लोगोवि काउमारद्धो / गुरुदत्तिया य कन्ना परिणिते तओ पाए // 1644 // दत्तिव्व दाणमुसभं देंतं दटुंजणमिवि पवत्तं। (जिणभिक्खादाणंपिहु दटुंभिक्खा पवत्ताउ)॥१६४५॥ (मडयं मयस्स) देहो तं मरुदेवीऍ पढमसिद्धोत्ति / देवेहिं पुरा महियं झामणया अग्गिसक्कारो॥१६४६॥ *