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________________ निर्गमे कुल. विशेषाव० कोट्याचार्य कराः // 443 // // 443 // ओसप्पिणी इमीसे ततियाएँ समाए पच्छिमे भागे। पलिओवमट्ठभागेसेसभि उ कुलगरुपत्ती॥१५६३।। अङ्कभरहमज्झिल्ले तियभागे गंगसिंधुमज्झमि / एत्थ बहुमज्झदेसे उप्पण्णा कुलगरा सत्त // 1564 // पुब्वभवजम्मनाम पमाणसंघयणमेव संठाणं / वणित्थि आउभागा भवणोवायो य णीती य // 1565 // अवरविदेहे दो वणियवयंसामाइ उज्जुए चेव / कालगया इह भरहे हत्थी मणुओय आयाया // 1566 / / (दाएं) दटुं सिणेहकरणं गयमारुहणं च नामनिप्फत्ती। परिहाणि गेहि कलहोसामत्थण विण्णवण हत्ती // 1567 // पढमेत्थ विमलवाहण चक्खुम जसमं चउत्थमभिचंदे। तत्तो पसेणई (ए मरुदेवे) चेव नाही य॥१५६८॥(दार) णवणुसयाई पढमो अह य सत्तद्धसत्तमाइंच। छच्चेव अद्धछट्ठा पंचसया पण्णवीसा य॥१५६९।। (दाएं) वज्जरिसभसंघयणा समचउरंसाय होंति संठाणे / वन्नंपिय वोच्छामि पत्तेयं जस्स जो आसि // 157 // (दाएं) चक्खुमजसमं च पसेणई य एए पियंगुवण्णाभा। अभिचंदो ससिगोरो निम्मलकण गप्पभा सेसा // 1571 // (चंदजस चंदकंता सु) रूव पडि(रूव चक्खुकंता य)। सिरिकतामरुदेवा कुलगरपत्तीण णामाणि॥१५७२।। संघयणं संठाणं उच्चत्तं चेव कुलगरेहिं समं / वन्नेण एगवन्ना सव्वाओं पियंगुवनाओ॥१५७३।। (दाएं) पलिओवमदसभागो पढमस्साउं ततो असंखेजा। ते आणुपुब्विहीणा पुब्वा नाभिस्स संखेना॥१५७४॥ ज चेव आउगं कुलगराण तं चेव होइ तासिंपि। जं पढमगस्स आउं तावइयं होइ हथिस्स // 1575 // जं जस्स आउयं खलु तं दसभागे समं विभइऊणं / मज्झिल्लट्ठविभागे कुलगरकालं वियाणाहि // 1576 CRORSCORRECORRECRAK
SR No.600320
Book TitleVisheshavashyak Bhashyam Purvarddha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinbhadra Gani Kshamashraman
PublisherRushabhdev Keshrimal Shwetambar Samstha
Publication Year1937
Total Pages504
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript & agam_aavashyak
File Size40 MB
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