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________________ A 2054 विशेषाव कोव्याचार्य निर्देशे नय| विचारः वृत्तौ // 432 // // 432 // निहिस्सवि कस्सति नणूवघायाइओ तयं जुत्तं / ते तस्स सकारणओ इहराथाणुस्सवि हवेजा // 1526 // सरनामोदयजणियं, वयणं देहो व्व वत्नुपज्जाओ। तं नाभिधेयधम्मो जुत्तमभावाभिहाणाओ // 1527 // भावम्मिवि संबद्धं तमसंबद्धं व तं पगासेजा। जइ संबद्धं तिहुयणवावित्ति तयं पगासेउ // 1528 // निविण्णाणत्तणओ नासंबद्धं तयं पईवो व्व / भासयइ असंबद्धं अह तो सव्वं पगासेउ // 1529 / / जइवि वयणिज्जवत्ता बज्झन्भंतर निमित्त सामण्णं / वत्ता तहवि पहाणो निमित्तमभंतरं जं सो // 1530 // सद्दो समाणलिंग निद्देसं भणइ विसरिसमवत्थु / उवउत्तो निद्देट्टा निद्देस्साओ जओऽणण्णो // 1531 // थी निहिसइ जइ पुमं थी चेव तओ जओ तदुवउत्तो। धीविनाणाणनो निहिसमाणलिंगोत्ति // 1532 // जइस पुमं तो नत्थी अह थी न पुमं नवा तदुवउत्तो। जोथीविण्णाणमओ नोथी सो सव्वहा नत्थि // 1533 // भासइ वाणुवउत्तो जइ अन्नाणी तओ न तव्वयणं / निद्देसो जेण मयं निच्छियदेसोत्ति निहसो॥१५३४॥ सो जइ नाणुवउत्तोष्णुवउत्तो वा न नाम निहसो। निद्देसोऽणुवउत्तो य बेइ सहो न तं वत्थु // 1535 // तम्हा जं जं निहिसइ तदुवउत्तो स तम्मओ होइ / वत्ता वयणिज्जाओग्नन्नोत्ति समाणलिंगो सो॥१५३६॥ सामाइओवउत्तो जीवो सामाइयं सयं चेव / निद्दिसइ जओ सव्वो समाणलिंगो स तेणेव // 1537 // इय सव्वनयमयाई परित्तविसयाई समुदियाइं तु / जइणं बज्झन्भंतरनिद्देसनिमित्तसंगाहि // 1538 // निहिस्स पसूई सा दव्वक्खेत्तकालभावेहिं / किं तं च? जीवदव्वं पसूयमेयं जओ जह वा // 1539 / / ALCHARACRECRACK 05
SR No.600320
Book TitleVisheshavashyak Bhashyam Purvarddha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinbhadra Gani Kshamashraman
PublisherRushabhdev Keshrimal Shwetambar Samstha
Publication Year1937
Total Pages504
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript & agam_aavashyak
File Size40 MB
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