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________________ आवश्यकस्यनामादयः // 277 // विशेषाव उ // 3 // जायं च देवमिहुणं, पडियाणि दुएवि नरजुयं जायं। सो भणति पुण पडामो, जा देवजुयं किल भवामो॥४॥ तीए वरजुव- कोव्याचार्य तीए, पडिओ धरतीए सो नरो सलिले / जाओ पुणोऽवि सोच्चेव मक्कडो सिरिमतिच्छंतो // 5 // नारी रमा गहिया, सोविय वृत्तौ है माइंदजालपुरिसेहिं। रण्णो पुरओ गचंतएसु सो वानरो मुको // 6 // तं दणं वरहाररयणपरिमंडियं नियं जुबई / पत्थेइ तीऍ भणिओ, है एस सिलोगोत्ति निउणाए // 7 // जो जहा वट्टर कालो, तं तहा सेव वानरा!। मा वंजुल पडिभट्ठो, दाणरा ! पडणं सर // 8 // " उ॥२७७|| वणओ एस एवेत्यधिकृतगाथापूर्वार्द्धार्थः / अथ भावहीणाहिए उदाहरणं, तथा चाह-'उभयेति भावहीणे भावहिये य दृष्टान्तः, कः? इत्यत आह-चालाउराइमोयणमेसज्जविवज्जओ' एतदुक्तं भवति-"तित्तकडुमेसयाई मा णं पीलेज्ज ऊणये देति, पउणइ ण, तेहिं अहिएहि मरति, ग्लान इति गम्यते, एवं बालोऽप्याहारमङ्गीकृत्येति गाथार्थः // 864 ॥'चंदगुत्ते'त्यादि,गाथाः पञ्च // 865-69 // इत्यागमतो द्रव्यावश्यकं गतं, द्वितीयभेदमधिकृत्याह-'नोआगमतो इत्यादि / नोआगमतः ज्ञशरीरद्रव्यावश्यकं "परिणिव्वुयमुणिदेहं सिद्धसिलातलगयं मुणयन्वं / अणुभूयभाववेक्खा, वइ तडवडिओ घयघडोच // 1 // " तथा भव्यशरीरद्रव्यावश्यकं | यच्छरीरमावश्यकमिति पदं ज्ञास्यति योग्यत्वात् घृतघटवदेव, उभयव्यतिरिक्तं तु त्रिविधं, कथमित्याह-'लोइय'त्ति जे इमे राईसरादि मुखादिप्रक्षालनमुषसि कुर्वते, लोकोत्तरं च'जे इमे समणगुणमुक्कजोगी जाव उभओ कालं आवासयस्स उवट्ठायन्ति, ' तथा कुप्पावणियं तिहं तिसट्ठाणं पावादुयसयाण कोट्टकिरियादीणं उवलेवणसंमज्जणादि एवं जहा सुत्ते अणुओगदारेषु तथा वन्नेयव्वंति गाथार्थः // 870 // "वसंतपुरे अगीयस्थसंविग्गपरिवारो तहाविहो चेव गणी गच्छो य परिवसति, तत्थ य एगो साहू दिवसदेवसियं उदउल्लाइअणेसणादि पडिगाहेत्ता स्यणीए महयामहया संवेगेणालोएति, तस्स पुण गणी अगीयत्थत्तणओ पायच्छितं +5+4+4+4+4+4+4+4+4 HR26466
SR No.600320
Book TitleVisheshavashyak Bhashyam Purvarddha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinbhadra Gani Kshamashraman
PublisherRushabhdev Keshrimal Shwetambar Samstha
Publication Year1937
Total Pages504
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript & agam_aavashyak
File Size40 MB
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