________________ विशेषाव कोव्याचार्य // 14 // ESO दिसिविडियस्स पढमोतिगमे ते चेव सेसया तिन्नि। विदिसिडियरस समया पंचातिगमम्मिजंदोण्णि।३८६॥ | भाषाबाहचउसमयमझगहणे तिपंचगहणं तुलाइमज्झस्स। जह गहणे पखंतग्गहणं चित्ता य सुत्तगई // 387 // * कशरीराणि कत्था देसग्गहणं कत्थइ घेप्पंति निरवसेसाई। उक्कमकमजुत्ताई कारणवसओ निउत्ताई // 388 // भाषामेदाश्च चउसमयविग्गहे सति महल्लबंधमितिसमओजह वा। मोनु तिपंचसमयेतह चउसमओ इह निबद्धो // 389 // होइ असंखेजइमे भागे लोगस्स पढमबिइएसु / भासा असंखभागो भयणा सेसेसु समयेसु // 39 // // 148 // आपूरियम्मि लोगे दोण्हवि लोगस्स तह य भासाए। चरिमन्ते चरिमन्तो चरिमे समयम्मि सव्वत्थ // 39 // न समुग्धायगईए मीसयसवणं मयं च दंडम्मि / जइ तोऽवि तीहिं पूरइ समएहिं जओ पराघाओ॥३९॥ जाणे न पराघांओ स जीवजोगो य तेण चउसमओ। हेऊ होजाहि तहिं इच्छा कम्मं सहावो वा // 393 // खंघोवि वीससाए न पराघाओय तेण चउसमओ। अह होज पराघाओहविज तोसोवि तिसमइओ॥३९४॥ एगदिसमाइसमए दंड काऊण चउहिं पूरेह / अन्ने भणंति तंपि य नागमजुत्तिक्स्वमं होइ // 395 // "जइथे' त्यादि / जैनसमुद्घातगत्या केचन भाषन्ते चतुर्भिः समयैः सकललोकः पूर्यते, 'प्रथमे समये दंड' मित्येवमाद्यनयेत्यभिप्रायः, तत्रैतत् स्याद्-मावन्तां को निवारयते इति ?, उच्यते, सिद्धान्तः, तथाहि-एषामेवंवादिनामूर्ध्वाधोदिग्वे दण्डमात्रगमना चतसुषु दिक्षु मिश्रशब्दश्रवणमादिसमये न प्राप्नोति, उक्तं चैतदविशेषेण नियुक्तिकृता-'भासासमसेढीओ सदं जं सुणइ मीसयं सु|गई। अथ सामान्योक्तित एव व्याख्यानतोऽर्थप्रतिपचिर्दण्ड एव मिश्रशन्दश्रवणं, न शेषदिविति, नन्वेवमपि विमिरापूर्यत इति