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________________ विशेषाव कोट्याचार्य वृत्ती आदौ नमस्कार: // 9 // अंडयं पयत्तेणं / बारस संवच्छरियं सो संलेहं अह करेइ // 1 // चत्तारि विचित्ताई विगईनिज्जूहियाई चत्तारि। संवच्छरे य दोन्नि उ एगतरियं च आयामं // 2 // नाइविगिट्ठो य तवो छम्मासे परिमियं च आयामं / अन्नेऽवि य छम्मासे होइ विगिढ़ तवोकम्मं // 3 // वासं कोडीसहियं आयामं कटु आणुपुव्वीए / गिरिकंदरं तु गंतुं पायवगमणं अह करेइ // 4 // " अभ्युद्यतविहारे तु जिनकल्पप्रतिपच्यादौ, सा चैवम्-“तवेण सत्तेण सुत्तेण, एगत्तेण बलेण य / तुलणा पंचहा वुत्ता, जिणकप्पं पडिवज्जओ // 1 // पढमा उवस्सयंमी | बिइया बाहि तइया चउक्कमि / सुन्नहरम्मि चउत्थी अह पंचमिया मसाणंमि // 2 // सत्त य से एसणाओ, तंजहा-"संसट्टमसंसट्ठा | उद्धड तह होइ अप्पलेवा य / उग्गहिया पग्गहिया उज्झियधम्मा य सत्तमिया // 1 // पंचसु गहो दोसु अभिग्गहो भत्तं पंथा य ततिः | | याए' एवमादि, तथा 'ठिती चेव'त्ति तत्र च द्विविधेऽपि विहारे स्थिति:-श्रुतसंहननादिका वक्तव्येति, यत एवमयं क्रमोऽतः तेणेव | याधिकारोऽयमिति गाथार्थः // 7 // अधीतपश्चनमस्कारायेदं ददतीत्युक्तं, अत आह आईए नमोक्कारो जइ पच्छाऽऽवासयं तओ पुव्वं / तस्स भणिएऽणुओगे जुत्तो आवस्सयस्स तओ॥८॥ ___'यदि' इत्यभ्युपगमप्रदर्शनार्थः, तेनैतदुक्तं भवति-यदि गुरुभिः शिष्यस्य आदौ नमस्कारो दीयते पश्चादावश्यकं ततः तस्मात् म्-आदौ 'तस्य नमस्कारस्य 'भणिते' कृते 'अनुयोगे' अर्थान्वाख्याने 'युक्तो' घटमानः 'आवश्यकस्य' षडध्ययनसमुदायात्म| कस्य श्रुतस्कन्धविशेषस्य ततः पश्चादनुयोगः, किं कारणं ?, इत्थमेव पठनक्रमात् 'तेणेवयाणुयोगं कमेण' इति वचनादिति गाथार्थः // 9 // आचार्य आह-नैतदेवं, कारणसद्भावात्, तथाहि सो सव्वसुअक्खन्धन्भन्तरभूओ जओ तओ तस्स / आवासयाणुओगादिगहणगहिओऽणुओगोवि // 9 // KARNAKERGRANAS
SR No.600320
Book TitleVisheshavashyak Bhashyam Purvarddha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinbhadra Gani Kshamashraman
PublisherRushabhdev Keshrimal Shwetambar Samstha
Publication Year1937
Total Pages504
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript & agam_aavashyak
File Size40 MB
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