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________________ बृहत्कल्पस्य सूक्तानि आगमीयसूक्तावली ॥३८॥ EEEEEEEEEEM जह तुरियं नागच्छइ लग्गइ गुरुए चउम्मासे ॥२८८-१-१०, ३८ न वओ एत्थ पमाणं न तवस्सित्तं सुयं न परिआओ। ३० जह भमरमहुयरिगणो निवतंती कुसुमियंमि चूयवणे। अविय खीणमि वेदे थीलिंगं सब्बहा रक्खं ॥ (३१५-१-४)। ___इय होइ निवइयब्वं गेलणे कइयवजढेणं॥ २८८-१-१३ | ३९ सीहं पालेइ गुहा अविहाडतेण सा महिड्डीया । तस्स . ३१ सोऊण ऊ गिलाणं जो उवयारेण आगओ सुद्धो। । पुण जोब्वर्णमि पओयणं किं गिरिगुहाए ? ॥ (३१६-१-१५) जो उ उबेहं कुजा लग्गइ गुरुए स वित्थारे ॥ (२८८२-१३)| द्वितीये खंडेपडिचरा(रया मि गिलाणं गेलण्णे वावडाण वा काहं। ४० न य सो भावो विजई अदोसवं जो अनिययस्स ॥ (२-२-९) तित्थाणुसजणा खलु भत्तीय कया हवद एवं ।। (२८८-२-१३) ४१ जइवा सहीणरयणे भवणे कासह पमायदोसेणं । ३३ बंधुजणविप्पओगे अमायपुत्तेवि वट्टमाणमि। तहवि डशंति समादित्ते अपिच्छमाणस्सवि वसूणि ॥ गिलाणं सुविहिया बच्चति वइत्तणं साह॥ (३०३-२-१४) इय संदसणसंभासणेहिं संदीविओ मयणवण्ही। 1 ३४ सबजगजीपहियं साहुंन जहाम एस धम्मो णे। । वंभादी गुणरयणे उज्झइऽणिच्छस्सवि पमाया ॥ (४-१-५) जति य जहाको साहुं जीवियसेत्तेण किं अभ्ह ॥ (३०४-१-८) | ४२ पावस्स लोगे पडिहाइ पावो, कल्लाणकारिस्स य ३५ जइ संजमो जइ तवो दढमित्तितं जहुत्तकारितं । साहुकारी॥ (११-१-१२) जइ बभं जद सोयं एएसु परं न अन्गेसु ॥ (३०४-२-१) ४३ वारियवामो बलियतरं बाहए मोहो॥ १३-१-७) ३६ सच्चं तवो पसीलं अणहिक्खाओ अ एगमेगस्स । ४४ मोहग्गिआहुइनिभाहिईयवायाहऽहियवायाहिं । जइ बंभं जइ सोयं एयासु परं न अन्नासु ॥ | धंतपि धिइसमत्था चलंति किमु दुबलाधिईआ॥ (१३-१-११) ३७ वाहिरमलपरिछूढा सीलसुगन्धा तवोगुणविसुद्धा । ४५ संदंसणेण पीई पीईओं रह रईउ बीसभो। धन्नाण कुलुप्पन्ना एया अवि होज अम्हंपि ॥ (३१३-१-२)। बीसंभाओ पणओ पंचविहं बहुए पेम्मं ॥. (१६ ॥३८॥
SR No.600311
Book TitleAgamiya Suktavalyadi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSagaranandsuri, Anandsagarsuri
PublisherJain Pustak Pracharak Samstha
Publication Year1949
Total Pages76
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript & agam_related_other_literature
File Size7 MB
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