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________________ 88 अनुवादक-बाल ब्रह्मचारी मुनि श्री अमोलक ऋषिजी + मोहस्मय हेउभूयं चिरपरिचयं, मणुगयं, दुरंत // 1 // चउत्थं अहम्मदारं तस्मय न'माणि इमाग गौणाणि होति तीसं,तंजहा-१अबंभ, 2 मेहुणं३चरंत 4 ससंगिग ५सेवणाहिकारो 6 संकप्पो, 7 बाहणायदाण८दप्पो,९ मोहो, 10 मणसंखोभो, 11 अणिगहो, 12 बिग्गहो, 13 विघाउ, 14 विभंगो, 15 विन्भवो, 16 अधम्मो 17 असीलया, 18 गामधम्मत्तती, 19 रती, 20 रागचिंता, 21 कामभोग मारो, बंधन, व्याघात मृत्यु को प्रस करानेगाला है. दर्शन और चारित्र मोहनीय कर्म करने का हेतुभूत है, इस का प्राणियों को दीर्घ काल से परिचय है. इस का अंत करना बडा कठिन है // 1 // इस के गुण निष्पन्न तीस नाप कहे हैं-१ अब्रह्म-आत्मा के गुण का नाशक, 2 पैथुन-असंख्य जीवों का मथन, 3 चरंत-सब जगज्जीवों से आचरित. 4 संमर्ग:-स्त्री पुरुष का संबंध करानेवाला, 5 सेवनाधिकारी-अन्य अनेक कुकर्षों का अधिकारी, 6 संकल्पी संकल्प विकल्प का स्थान, 7 वाधन प्रमाण-वाधा दाख का? प्रदान. 8 दर्प-काम करने वाला, 9 मोह-मोका स्थान 10 मन सोम-नको क्षोभ करने वाला 111 अनिग्रह-इन्द्रियों का निग्रह नहीं करने पाला, 12 विग्रह-क्लेश करने वाला 13 विघ त घात मृत्यु करने बाला, 14 विभंग-व्रतादि भंग करने वाला, 15 विभ्रम-सुखरूप भ्रम का स्थान 16 अधर्म 117 अशील 18 प्रामधर्मवती इन्द्रियों के धर्म मे चित्त वृत्ति वाला 19 रतिप्रीति 20 राग-स्नेह *पकाइक-राजहादुर लामासु वसहायनी वाला प्रमादजी*
SR No.600304
Book TitlePrashna Vyakaran Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmolakrushi Maharaj
PublisherRaja Bahadur Lala Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Jouhari
Publication Year
Total Pages240
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript & agam_prashnavyakaran
File Size25 MB
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