________________ - OGA 48 दशमाङ्ग-प्रश्नव्याकरण सूत्र-प्रथम आश्रवद्वार 22 वेर, 23 रहस्सं, 24 गुज्झं, 25 बहुमाणो, 26 बंभचेरविग्यो, 27 वावत्ति, 28 विराहणा, 29 पमंगो, 30 कामगुणोति बिय, तरस एयाणि एवमादीणि नाम धेज्जाणि होति तीसं // 2 // तंच पुण निसेवितं सुरगणा अस्थरा, मोहमोहियमती, असुर भयग गरुल विजुजलण दीव उदाह दिसि पवण थगिय // अणपन्निय. पणपन्निय, इसिवादिय, भूतवादियं, कंदिय, मह कंदिय, कोहंड पयंगदेवा, पिसाय, भूय, जक्ख, रक्खस, किण्णर, किंपुरिस, महोरग, गंधव // तिरिय / 21 काम-श्रोत्र चक्षु इन्द्रिय का विषय भोग-प्रानारस और स्पर्शन्द्रिय का विषय, मार-मारने वाला। 122 वेर पैर विरोधका स्थान, 23 रहस्य-गुप्त कर्तव्य 24 गृह्य 25 वहुपाम 26 ब्रह्मचर्यपातिक 27 व्यावृति 28 विराधक-ज्ञानादि गुणों की विराधना करने वाला, 29 प्रमंग संबंध और 30 काम है कंदर्प का गुन यों तीस नाम कहे हैं. // 2 // अब इस के सेवन करने वाले का कथन करते हैं-आप्सर ओं सहित देवों का समुदाय, मोहपय,बुद्धिाळे अमुरकुपार, नागकुमार, सुवर्गकुमार, विद्युत्कुमार, अग्निकुमार, द्वीपकुमार, उदयकुमार, दिशाकुगर, पवनकुमार, और स्थनितकुमार, ये दश भव-पति, देव आणपन्नी, पाणपनी, इसीवाइ, भूइवाइ, कंदिय, महाकंदिय, कोहंड और पयंगदेव ये 8 वाण व्यंतर: ॐ देव, तथा पिशाच, भूत, यक्ष, राक्षस, किन्नर, किंपुरुष, महोरग, और गंधर्व, ये आठ व्यंतर अब्रह्मवर्य नामक चतुर्थ अध्ययन ग्य न 4. 8+