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________________ 4. 42 दशमाङ्ग प्रश्नकरण सुष-प्रथम-आश्रवद्वार // चतुर्थ-अब्रह्मचर्य नामक अधर्मदारम्.॥ .. अंबू ! अबंभंचउत्थं सदेव मणुयासुरस्स लोगस्त पत्थणिज पंक पणग पास जाल भूयंत्थी पुरिस नपुंसगवेदचिण्हं, तवभंजम बंभचेर विग्धं, भेदायतण बहु ___प्पमादमूलं, कायर कापुरिससेवियं, सुयण जण बज्जणिजं, उड्डूं नरयतिरिय तिलोग पइट्ठाणं, जरा मरण रोग सोग बहुलं वहबंधविधाय दसरसण चरित्त श्र मुधर्मा स्वामी कहते हैं कि अहो जम्बू ! चौथा आश्रव द्वार तेरे से कहता हूं इम का नाम अब्रह्म है. वैमानिक, देव, ज्योतिषी, मनुष्य, असुर लोक भवनपति वगैरह इस के आधीन हैं. अर्थत् इस संसार में इन्द्रादि देव दानव इस को नहीं जीत सके हैं, तो पनुष्य का कहना ही क्या ? यह अब्रह्म पंककदर्भ जैसा फसानेवालापनग फूलण जैसा रपट नेवाला सूक्ष्म है, जाल सपान बंध करनेवाला है,स्त्री पुरुष और नपुंसक बेद का चिन्ह है, तप संयम और ब्रह्मचर्यादि धर्म में विघ्न करनेवाला है, इन गुणों को भेदनेवाला है, महा विषय कषाय निंदा और विकथा रूप प्रमाद का मूल है, इस का कायर पुरुष मेवन करते हैं, परंत शूरवीर पुरुष सेवन नहीं करते हैं, सज्जन को वर्जनीय है, ऊर्ध्व लोक-स्वर्ग, अधो लोक-नरक और तीच्छी लोक इन तीनों में प्रतिष्ठित है, जरा-वृद्धावस्था, मृत्यु, रोग, शोग की वृद्धि करनेवाला है, वध, अब्रह्मवय नाक चतुर्थ अध्पयन
SR No.600304
Book TitlePrashna Vyakaran Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmolakrushi Maharaj
PublisherRaja Bahadur Lala Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Jouhari
Publication Year
Total Pages240
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript & agam_prashnavyakaran
File Size25 MB
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