________________ ++ श्री प्रश्नव्याकरण मूत्र की प्रस्तावना. श्रीवईमानमानम्यःश्रीगुरूणां प्रसादतः॥प्रश्नव्याकरणांगस्य,वार्तिकं लिख्यतेमया॥ 1 // चौवीस तीर्थंकर श्री वर्द्धमानस्वामी को नमस्कार कर के. और श्री गुरु महाराजने दी हुई कप्रसादी के प्रसाद कर के इस प्रश्नव्याकरण शास्त्र का हिन्दीभाषानुवाद करता हुं // 1 // जिस प्रकार प्रश्नव्याकरण सूत्र का संक्षिप्त कथन समवायांग में कहा है. 1.8 प्रश्न अमन वशीकरणादिविद्या. अंगष्टादि प्रश्न इत्यादि के 45 उद्देश 45 समुद्देश इस वक्त उपलब्ध नहीं होते हैं. परंतु इस वक्त तो प्रश्नव्याकरण के दो श्रुतस्कन्ध आश्रवद्वार के पांव अध्ययनों मे पांचों आश्रवद्वार +का और दूसरे श्रुतस्कन्ध संवरद्वारके पांच अध्ययनमें दया आदि पांच संबरद्वारका बहुत विस्तारे के साथ में नर्णन किया है. इस की छपी हुई प्रत नहीं मिलने से हस्तलिखित तीन प्रतों मेरे पास थी उसपर पाठ का उतारा व अनुवाद किया है. धर्म और पाप का सत्य स्वरूप खुल्लमखुल्ला समझाने के लिये यह शाख मुख्य है. फिर भान एवडा की जैन सुधारक कम्पनी से बाबुधनपतसिंह के तरफ से प्रसिद्ध हुइ प्रत मिली उस पर से प्रूफ का सुधारा किया है. तद्यपि नो.अशुद्धी रहगइ हो उसे शुद्धकर पठन कीजीये. धर्म की परीक्षा के लिये यह मूत्र दुर्वीन रूप हैं. इस लिये इसे दत्तचित्त से भवस्यही पठन करना चाहिये. 4484 दशमांग प्रश्नव्याकरण विषयानुक्रमाणिका 488tist