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________________ अनुवादक-बालब्रह्मचारी मुनि श्री अमालक ऋषिनी : खारकडुय तित्तन्हावण जायण कारणसयाणि बहुयाणि पावयंता उरक्खोडीदिन्न गाढपेलण अट्टिकसं भग्गसंपसूलिया गलकालक लोहदंड उरओदग्वत्यि, पिटिपरिपीलीयामच्छंतहियय संचुणियंगमंगा, आणती किंकरहिं, केयि अविराहियवेरि एहिंजमपुरिससंन्निभेहिं पहया ते, तत्थमदपुणा, चडवेला बब्भपहपोराइंत्थिवा कसलय, वरत्तबत्तप्पहारसयतालियंगमंगा किवणालंबंत चम्मवण विणय विमुहिय, कचरा वगैरह में गाडते हैं. हृदय कम्पित होवे वो अंगोपांग मरोड़ते हैं, बंधन से व्याकुल बनकर निश्वाम डालते हैं. मस्तक को आई चर्प का वेष्टन करते हैं, जंघा काटते हैं. काष्ट के यंत्र में पांव फमाते हैं, लोहके तपाये हुए तार अथाव सूड अंग में धूडते हैं, लकडी जैसे छोलते हैं, क्षार तेल मानी तेजाप कडुमेह नीक्ष्ण द्रव्य से स्नान कराते हैं. सेंकडो प्रकार के दुःख उत्पन्न करते हैं. अत्यंत दुःख पीडित बनकर वह इधर उधर लोटना हैं, हड्डी पसलियों का भंग करते हैं, लोहके दंड से कूटते हैं, हृदय, उदर, इन्द्रिय और पृष्ट भाग इतने स्थान में पीडा करते हैं, मंथन कर हृदय को चूर्ण करते हैं, कोतवालादिक सेवक उनकी आज्ञानुसार उस तस्कर को अनेक प्रकार के दुःख देते हैं. कितनेक पग्माधर्मी जैसे हीन पुण्यवाले प्राणी को चपेटादि लगाते हैं, चमडा नीकालते है, लोह की संकल, मूत के चाटूक, लता, चमडे के चाबूक, नाडियों इत्यादि सेंकडों प्रहार से मारते हैं. अंगोपांग का छेदन करते हैं. वे दीन बनकर *काशक राजाबहादुर लाला सुखखदेवसहाय जीज्वालाममादजी* 1
SR No.600304
Book TitlePrashna Vyakaran Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmolakrushi Maharaj
PublisherRaja Bahadur Lala Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Jouhari
Publication Year
Total Pages240
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript & agam_prashnavyakaran
File Size25 MB
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