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________________ + मणा घणकोटिम नियल जुयल संकोडिय मडियाय कीरति निरुच्चागपया अन्नाय एवमादीओ वेयणाओ पावा पावंति दंतिदियावसहा, बहुमोहमोहिया परधणमि लुडा फासिदिय विसयतिब्बगिद्धा, इत्थिगय रूबसहरसगंध इट्ठरतिमहित भोगत एहाइयाय धणतोसगागहियाय जे नरगणा पुणरविते कम्मदुवियढा उवणीया रायकिंकराणं, तेसिंबधसत्थग पाढयाणविल उलीकारगाणं, लंचसयगेण्हगाणं, कूडकवडमायनियडि आयरणपणिहिं वंचणविसारथाणं, बहुविह अलियसय जंपकाणं श्वासोच्छवास डालते हैं, मुख का चमडा संकोचते हैं, वेदना से आकूल व्याकूल होते हैं, चोरी के कम से विमुख बनते हैं, हमने चेरी क्यों की ऐसा पश्चाताप करते हैं, लोह के धन से उन के शरीर के ममस्थान है गदते हैं, उन के पांव छोटी बेड़ियों से संकोवाते हैं, उन की हड्डीयों का भंग होन से कोतवाल के वश बने हुवे उन की लघुनीत बडीनीत की बाधा भी नहीं मीटा सकते हैं. इत्यादि अनेक वेदना से उन का शरीर क्षीण होता है. जिनोंने अपनी इन्द्रियों का पापकारी कार्य से संयम नहीं किया है वे ऐसा दुःख मांगते हैं. वे अत्यंत मोह मुग्ध दूसरे के धन में लोलुप्त, स्पर्शेन्द्रिय के विषय में तीव्र गृद्ध, स्त्री के रूप में आसक्त, रूप शन्द गंध रस, इष्टकारी रतिकारी भोग के पिपासु, अधिक तृष्णावाले, दूसरे के धन की "अभिलाषा करनेवाले, चोर को चोर के कार्य में पर्तते हुए देखकर कोतवाल बंधन में डालता है. वहां / / 41 दशमङ्ग-प्रश्नव्याकरण मूत्र-प्रथम-आश्रः द्वार at antr अदत्त नामक तृतीय-अध्ययन
SR No.600304
Book TitlePrashna Vyakaran Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmolakrushi Maharaj
PublisherRaja Bahadur Lala Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Jouhari
Publication Year
Total Pages240
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript & agam_prashnavyakaran
File Size25 MB
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