________________ +4 4.दंशण प्रश्नकरण मृन-प्रथम-अश्रद्वार हडिनियल वालग्ज्जुय कुदंडग वरतलोहसंकल इत्थंडुय वझंवदामकणि कोदंडणेहिं, अण्णेहिं एवमाईएहिं गोमिगभंडोवगरणेहिं दुक्खसमुदीरण हैं, संकोडण मोडणेहि वज्झंति मंदपुण्णा संपुडकवाड, लाहपंजर, भूभिघर निरीह. कूवचारगं कीलगजुय चक्कावततबंधण, खंभालिंगण उद्दचलन, बंधणविहं मणाहिय विहेडियंता, अवकाडा गाढउर सिरबद्ध उद्धपुरित, फरंतउर कडमोडणेहिं बडायनीससंता, सोसावेढया उरयाचप्पडसांध, बंधणतत्त सिलाग सूयियाकोडणाणि, तच्छण विमाणणाणिय, देतहैं।।८॥ शिष्य पूछता है कि अहो भगवन! कैसा दुःख उत्पन्न करते हैं? गुरु कहते हैं कि उसे लोहके बंधन मे में डालते हैं, पशु बंधन रूप रस्मी से बांधते हैं, चमडे की रस्सी से बांधते हैं, हाथ में लोहमय हतकडियों 1 डालते हैं, हाथ बंधन, पांव बंधन, ग्रीवा वंश्न वगैरह अनेक प्रकार के बंधन से बांधते हैं, शरीर का में मंकोच करते हैं. अंगोपांग पगेडते हैं, बंधन में बांधते हैं, मन्द-हान पुण्य वाले का ऐसा हाल होता है / * इसे यंत्र में डालकर पीलते हैं, लोहके पंजरमें बंध करते हैं, भूगर्भ (पोयरे) में डालते हैं. अंधकूप में डालते हैं। खीले ठोकते हैं, रथ के चक्र साथ बांधते हैं, स्तंभ के साथ बांधते हैं, लोहस्तंभ को ऊष्ण करके उम मे 2 आलिंगन करवाते हैं, उपर पांव और नीचा शिर करके लटकाते हैं, कदर्थना करते हैं, इधर उधर फीराते है, चमडे से मस्तक का बंधन करते हैं. श्वासोच्छवास का झंधन करके आकूल व्याकूल करते हैं, धूल सी + अदत्त नामक तृतीय अध्ययन