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________________ 41 अनुवादक-बाळब्रह्मचारी मुनि श्री अमोलक ऋषिजी - वसणसय समावण्णा // 7 // तहेव केइ परस्सदत्वं गवेसमाणा गहियाय हताय बद्ध रुद्धाय तरियं अतिधाडिता, पुरवर समप्पिता चोरग्गहं चारभड चाडकरण तेहिय कंप्पड प्पहार निद्दया आरक्खियखर परुस वयण तजणग, लुच्छल उच्छल्ल गाहिं विमणा चारक वसहि पवेसिया, नरयवसहिं सरिम, तत्थवि गोम्मिकप्पहार, दूमणा निभंछण कडुयवयण भेमणग भयाभिभूया, अक्खित्तणियंसणा, मलिणडंडि खंडववेसणा उक्कोडालंचन पासमग्गण परायणेहि, गोमिगभडेहिं, विविहेहिं बंधणाहे // 8 // किंते करते हैं. // 7 // वो ही पग्रव्य हग्न करते कदाचित राजपुरुषों पकड लेवेतो भाखसी आदि में शेकते. हैं. नगर में फीराते हैं. नगर में पडह से सब को सूचित करते हैं कि अमुक चोर पाडा गया, उसे दुष्ट में वचन सुनते हैं, रातें के प्रहार करते हैं. कोतवाल वगैरह निर्दय बनकर कठोर वचन कहते हैं. तर्जना करते हैं। मुहपर तमाचा लगाते हैं. उस को कंदखाने में डालते हैं, वहां भी साक्षात नरक ममान दुःख होता है. वहां किसी प्रकार का सख नहीं होता है, केवल दुःख ही दुःख होता है. काराग्रड के रक्षक उस पर प्रहार करते हैं. अग्नि अदि का ताप, दुर्गन्धपना, निर्भत्सना करना, कट वचन बोलना, वगैरह अनेक प्रकार के भय सन्मुख होता है, उस के वस्त्र मब छीन लेते हैं, मालिन वस्त्र खण्ड का उमे देते हैं, और भी कोतवाल विविध प्रकार के बंधन में चोर को डालता है, उस के पास भिक्षा मंगवाता है और उस को सीपाई भी बड़ा दुःख *प्रकाशक-राजाबहादूर लालामुखदेवसहायजा ज्वालाप्रसादजी.
SR No.600304
Book TitlePrashna Vyakaran Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmolakrushi Maharaj
PublisherRaja Bahadur Lala Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Jouhari
Publication Year
Total Pages240
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript & agam_prashnavyakaran
File Size25 MB
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