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________________ - annnnnnnnnnnnnnnnwww // 6 // बालसय संकणिज्ज भयंकरा अयसकरा, तक्करा कसहरा मोत्ति अजदव्वं. इति सामत्थं करेंति गुज्झं, बहुयस्सजणस्स कजकरणेसु विग्धकरामत्तप्पमत्तप्पसुत बीमत्थ छिद्दघाती वसणभूदएसु हरणबुद्धि विगव रुहिर महियापरेतित्ति नरवति मज्जाय मतिकता सज्जणजण दुगंछिता, सक्कम्मेहि पावकम्मकारी, असुभपरिणयाय दुक्खभागी, निच्चाउल दुहमणिव्वुइमणा, इहलोए चेव किलिस्संता, परद्दव्वहर। नरा अटवि में जाकर रहता है // 6 // और भी सेंकडों सर्प से व्याप्त विषम स्थान में छिपने वाले, भयभीत होने वाले, अपयश करने वाले, आज अमुक की छोरी करना वैसा गूह्य वर्तलाप करने वाले, बहुत लोगो के कार्य में विघ्न डालने वाले, मद्यपान से मदोन्मत्त बने हुए. प्रथम (बाल ) अवस्था में पडे हुए, विश्वास उत्पन्न क. छिद्र देखने वाले, वस्त्र लकड वगैरह मब यस्तु की चोरी करने वले, जै नाहस जीव-पंजे वाले जीव रक्त चाटने के अभिलाषी होते हैं वैसे ही धन हरन की अभिलाषा क ने वाले, सब दिशां विदिशा में परिभ्रपण करने वाले, गजा की मर्यादा का उल्लंघन करने वाले, स्वजनी से दुर्गच्छा पाये हुए, अपने कई से. पाप कर्म करने वाले. सदैव अशुभ पारणाम के धारक. दुःख के विभागी 17 सदैव विस्तीर्ण दुःख व असमाधि से पीडित और पर द्रव्य के हरन करने वाले इस लोक में सेकडों दुःख प्राप्त + दशमाङ्ग-प्रश्नव्याकरण सूत्र-प्रथम आश्रद्वार High अदत्त नामक तृतीय अध्ययन .+
SR No.600304
Book TitlePrashna Vyakaran Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmolakrushi Maharaj
PublisherRaja Bahadur Lala Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Jouhari
Publication Year
Total Pages240
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript & agam_prashnavyakaran
File Size25 MB
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