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________________ - जणपोते, // 5 // परदब्बहरा नरा, निष्णुकंपा निरावयक्खा // गामागर णगर खेड कवड मंडव दोणमुह पट्टण सम णिगम जणवय तेय धण समिद्धे हणंति थिरहिताय छिन्नलज्जा, बंदिग्गह गोगहयगिण्हति दारुणमती, णिकिंवाणियंहणंति, छिदितिगेहसंधि, णिक्खित्ता णियहरंति धणधण्णदव्यजाताणि जणवयकुलाणणि ग्घिणमती, परस्सदव्वेहिं जे अविरया, तहेव केई अदिण्णादाणं गवेसमाणा कालाकालसु संचरंता वितकापजलित सरसदरदद्रुकड्डियकलवरे, रुधिरलित्तवदण करते हैं // 5 // परधन हरन करनेवाले चोर अनुकंपा रहित, परभव के डर रहित, ग्राम, धातु के आगर, नगर, खेड, कट, मंडप, द्रोह मुख, पाटण. आश्रम, निगम, और जनपद में धन हरन करते हैं, चोरी करने में 3 स्थिर हृदयाले, लज्जा का छेदन करनेवाले, स्त्री पुरुष को पाश रूप, गवादि पशु हरन करनेवाले, दारुग. निर्दयी, अपनी आत्मा के घातक, घर की संधी का छेद करनेवाले, खात देनेवाले, घर में धन धन्यादि हरन करनेघाले, देश में अनेक जाति के लोगों के साथ द्वष करनेवाले, घृणा रहित, अन्य का. ठग ग्रहण नहीं करने की प्रतिज्ञा रहित, ऐसे पुरुष अदत्तादान की गवेषणा करते हुए काल अकाल में? फीग्ने हुवे, मृत शरीर जलावे वैसे स्थान में से, रुधिरादि युक्त स्थान में से और कार्य के लिये स्थाप हुई. 16वस्तु में से वस्तु ग्रहण करे , मृत शरीर को अलंकृत किये हुए आभूषण का हरन करे, रुधिर लिप्त धातक / दशमङ्ग-प्रश्नाकरण मूत्र प्रथम श्रद्वार अदत्त नामक तृतीय अध्ययन
SR No.600304
Book TitlePrashna Vyakaran Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmolakrushi Maharaj
PublisherRaja Bahadur Lala Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Jouhari
Publication Year
Total Pages240
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript & agam_prashnavyakaran
File Size25 MB
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