________________ * अनुव दक-बालब्रह्मचारी मुनि श्री अमोलक ऋषिजी त सुहि नीहारित दूरसुच्ची गंभीर धुगधुगंतिसरं, पडिपहरुमैतं, जक्ख रक्खस, कुइंड पिसाय रुसियंतजाय, उवसग्ग सहरस संकुलं बहुप्पाइय भूतं विरचित बलिहोमधुव उवचारदिणरुधिर तच्च करण, पयत जोग पयय चरियं परियत्त जुगत काल कप्पोवमं दुरंति महानई नईवइ, महा भीम दरिसणिजं, दुरणुचरं विमम दुप्ण्वसं दुक्खुत्तरं, दुरासयं लवणसलिल पुण्णं // अमित सित समुसित गेहिहत्थंतर केहिं बाहणेहिय अतिवतित्ता समुद्द मज्झे हणति गंतूण : होता है. दूर मे दीर्घ शब्द मनाई दवे, मार्ग को मंघन करनेवाले राक्षम कोहंड देव पिशाच वगैरह उपपर्ग उत्पन्न करे. इन्की शानि के लिये अग्निहोत्र, धृप उपचार देवताओं की पूजा इत्यादिक से सावध पना स समुद्र की पेवा करे. छठे आरे मगन समुद्र भयंकर होचे, काल समान समुद्र भयंकर होवे, दुःख से वहां अंत हाता है. वह गंगा आदि नदियों का स्वामी है, महा भयंकर रूप धारन किया हुचा है. उस से उत्तीर्ण होना वडा दुष्कर देखाता है. उस का सेवन करना भी बहुन दुष्कर है. क्षारे पानी से भग हुवा है. नमक जैसे पानी से भरा हुवा है. निर्यामक ने कृष्ण वर्णवाली अजाओं ऊपर चढाई है. अपनी चाल छ टकर शीघ्रता पूर्वक चलने लग एस वाहन स संयुक्त समुद्र में चोर युक्त वाहनारूढ पुरुषों का घात *पशक-राजाबहादुर.बाळा सुखदेवसहायजी चालासाद जी * /