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________________ 4अनुवादक-बालब्रह्मचारी मुनि श्री अमोलक ऋषिजी ... अधग्म .. जाणे भणति .. .. अभिगहिय .पुण्णपावा. . पुणोय. महि करणे . किरियापवत्तका, बहुविहअणत्थक अवमई अप्पणो परस्सय करेंति॥६॥एवमेयं जंपमाणा ' महिसेसूकरेय साहिति घायकाणं, ससपसवरोहिएय, साहितिवा गुगणं, तित्तिर वदृक्क लावकेय. कविंजल कवोय केय साहीति साउणीणं, झस मगर कच्छभेय साहिति मच्छियाणं; सैक्खके कुलएय साहति मक्कराणं, अयगर गोणस मंडिली दवीकर...मउलीय साहति वालवाणे, गोहा सेहाय .. सल्लगे सरडकेयवर मृषावादी पुण्य पाप के कर्तव्य नहीं जानता है. इन पुण्य पाप के कर्तव्य से अज्ञ बनकर अधिकरण+an रूप क्रिया से बहुत प्रकार के अनर्थ में प्रवर्तता हुवा अपना तथा परका अवमर्दन करता है ॥६॥आगे कहगें इस प्रकार सत्यवाद बोलने वाला भी मृषावादी कहाते हैं-हिष सुअर का घात करने का कहे, शाला रोहिडे का. धात करने का कहे, तीतर लवा बटेर, पारापत आदिका धात करने का कहे. पच्छ, मगर, काच्छ का धात करने का मच्छीगर को कहे, शंख, कोडे खुल्लग वगैरह मारने का धीवर को कहे, अजगर, गोसर्प, ... + अधिकरण दो प्रकार के होते हैं-निवृति अधिकरण सो हल मूशलादि शस्त्र बनाना सो और 2 सयोजना अधिकरण, सी पहिले बनाये हुए खड्दादि को मुष्टयादिका संयोग मीलाना, अपूर्ण को पूर्ण करना. *काशक-राजाबहादर छालामखदेवसहायजी ज्वालामसादजी* BREAudi
SR No.600304
Book TitlePrashna Vyakaran Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmolakrushi Maharaj
PublisherRaja Bahadur Lala Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Jouhari
Publication Year
Total Pages240
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript & agam_prashnavyakaran
File Size25 MB
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