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________________ + प्रश्नव्याकरण मूम-प्रथम-आश्रवद्वार Naite तहगवालियं गुरुयंभणंति अहरगतिगमणं, अण्णंपिय-जाति-रूव-कुल-सील-पञ्चव ___ मायानिउणंच चवलं,पिसुणं परमट्ट भेद कमसंतकं विइंसमणत्थ कारक, पावकम्ममूलं दुदिटुं दुस्सुयं अमुणिय निल्लज्ज, लोगगरहाणज्जं, बह बंध परिकिलेस बहुल, जरा मरण दुक्ख सोगनेम ... असुद्ध परिणाम संकिलिटुं भणंति // 5 // अलियाहि संधि संकिलिट्ठा, असंतगुणुदीरगाय, संतगुण नासकाय, हिंसा भूतोवघातियं, अलियवयणसंपउत्ता सावज मकुसलं.. साहुगरहणिज्ज, ++ मृषा नामक द्वितीय अध्ययन winn अनर्थ करने वाला, और दुष्ट कर्म का मूल होता है... उस मृषावादी का देखा डुवा, मुना / हुवा. भी दृष्ट होता है. उस का मुनिपना भी दृष्ट होता है. वह लोक में अपवाद-गर्हणा को प्राप्त होता है. व बंधन रूप पहाक्लेश का भोक्ता बनता है. जरा वृद्धावस्था मृत्यु दुःख (शारीरिक) शेक दुःख (मानासको इन का मूलभूत होता है. उसे सदैव अशुद्ध परिणाम का धारक व संक्लेश सहित कहते हैं. // 5 5 / असत्य की संधि भीलाने में तत्पर, अविद्यमान गुन की उदीरणा करने वाला, विद्यमान गुन का नाश करने वाला, हिंसा से प्राणियों का उपधात करने वाला, असत्यवचनकारी प्रयोग करने वाला, सावद्य निंदनीय : कर्म करने वाला, अकुशल, आहितकारी, साधुओ में निंदनीय और अधर्म का उत्पादक मृषावाद है. वह।। - n nnnn
SR No.600304
Book TitlePrashna Vyakaran Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmolakrushi Maharaj
PublisherRaja Bahadur Lala Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Jouhari
Publication Year
Total Pages240
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript & agam_prashnavyakaran
File Size25 MB
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