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________________ 2 दशमङ्ग-प्रश्वव्याकरण सूत्र-प्रथम आश्रद्वार चिरपरिचित, मणुगयं, दुरंत कित्तियं विलियं अधम्मदारं॥१॥तरसय नामाणि गोणाणि. होति तीसं तजहा–१अलियं, 2 सटुं, 3 आणज्जं, 4 मायामोसो, 5 असंतकं, 6 कुडकवड मवत्थु, 7 निरत्थयमवत्थगं, 8 विदेसगरहणिज, 9 अणज्जगं, 10 ककणासाय, 21 वंचनाय, 12 मिच्छापच्छाकडंच, 13 साती, 14 उच्छत्तं, 15 उकूलंच, 16 अटुं, 17 अब्भक्खाणं, 18 किदिवस, 19 वलयं 20 गहणंच, 21. मम्मणंच, 22 नूमं, 23 णियति, 24 // अपच्चओ, होनेवाला, भव पुनर्भव करानेवाला, अर्थात् संसार में भ्रमण करानेवाला, चिरकाल से परिचित, और परंपससे पाप का स्थानक है // 1 // इस अधर्म द्वार के गुण निष्पन्न तीस नाम कहे हैं-१ अलिक, 2 शठ (धून ), 3 अनार्य, 4 माया मृषा 5 आविद्यमान 6 कुट, कपट अवस्तुक, 7 निर्थक अथवा अल्पर्थक, 8 विद्वजन को घृणा करने योग्य 9 वक-ऋजुता रहित 10 कर्कश कठिन पाप का करना 11 लोक को वंचना 12 मिथ्या अर्थत् उत्तम पुरुषोंने निरादर किया हुवा 13 अविश्वासी 14 छत्ररत् अपने दूषण और अन्य के गुन का अच्छादन करनेवाला 15 उत्कूल जैसे नदी मर्यादा छोडकर बहती है वैसे ही मर्यादा का त्याग करनेवाला 16 आर्तध्यान 17 अविद्यमान दोष का प्रकाश करना, 18 किल्विष-पाप का हतु, + मृषा नामक द्वितीय अध्ययन httt.
SR No.600304
Book TitlePrashna Vyakaran Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmolakrushi Maharaj
PublisherRaja Bahadur Lala Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Jouhari
Publication Year
Total Pages240
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript & agam_prashnavyakaran
File Size25 MB
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