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________________ मुनि श्री अमोलख ऋषिजा + // द्वितीय अध्ययनम् // जंबू ! वितियंच अलियवयणं, लहुसग, लहचंचल भणियं, भयंकर, दहकरं, अयसकर, वेरकरगं, अरति-रति-राग-दोस- मणसंकिलेस वियरणं अलिय नियडि, साति जोयबहुलं नियजणनिसेवियं, निसंसं, अपच्चयकारकं, परमसाहु गरहणिज्ज, परपीडाकारक, परमकण्हलसासहियं, दुग्गतिविणियाय, बड्डणं भवपुण्णभवकर, श्री सुधर्मा स्वामी अपने शिष्य श्री जम्बू स्वामी से कहते हैं कि अहो जम्बू ! दूपरा अधर्म द्वार का नाम अलिक-असत्य वचन बोलना यह है. जैसे हिमा अधर्म द्वार के पांच प्रतिद्वार कहे हैं. वैसे ही के यहां भी पांच प्रतिद्वार जानना. यह अलिक वचन गुण व गौरव से छोटा है अर्थात तोछडा है, इसके वश छेटे जीव बोलने में चपलता करते हैं. अलिक वचन भय करने वाला, दुःख करने वाला, अपयश करने वाला, वैर करने वाला, अरति, रति, राग, द्वेष, और मन का संक्ल / करने वाला, शुभ फल की अपेक्षा स इस का किंचिन्मात्र फल नहीं है, वैसा माया कपट का ढक्कन अर्थात् दोष छिपाने बाला, अविश्वास का स्थानक, नीच पुरुषोंने स्वीकृत किया हुवा, दुर्गछा रहित अपवित्र, अप्रतीत करनेवाला, उत्कृष्ट निन्दा के पात्र, अन्य को पीडा करनेवाला, उत्कृष्ट कृष्ण लेश्या का स्थानक, दुर्गति में पतित * प्रकाशक-राजाबहादुर लालासुखदेवस हायजी ज्वाल प्रसाद जी * omwwwwwwww
SR No.600304
Book TitlePrashna Vyakaran Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmolakrushi Maharaj
PublisherRaja Bahadur Lala Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Jouhari
Publication Year
Total Pages240
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript & agam_prashnavyakaran
File Size25 MB
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