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________________ PPS गमंगा कंककुररगिद्ध घोरकटुवायसगणेहिय पुणोखरथिर दढणखलोह तुंडहि / उवतित्ता, पक्खाहय तिक्खणह, विक्खित्त जिभिदिय णयण निदयो भुग्ग विगय वयणा उक्कोसंताय उप्पयंता, निपयंता भमंत पुव्यकम्मादयोवगता, पत्थाणुसरण डज्झमाणा जिंदता पुरेकडाइ कम्माइ पावगाइ तहिं 2 तारिसाणि उसन्नचिक्कणाई दुक्खाई अणुभवित्ता // 16 // ततोय आउक्खएणं उबटिया समाणा बहवे गच्छंति अनुवादक-शका ह्मचारी मुनि श्री अमोलक ऋषिजी रोधक, महावायस वगैरह पक्षी अपनी तीक्ष्ण चांच से टोचकर दृढ नखों मे और लोहमय मुख मे आकाश में, उछल कर पांरकों फडफडाते हुवे, तीक्ष्ण नख से कुचरकर चमडी नीकालते हुए, और मांसादि तोडकर मुख में से जिव्हा निकाल कर और आंखों फोडकर खाजाते हैं. इस प्रकार दुःख से आकुल व्याकुल बन हो नरक जीव भट्टी में के चने जैसे ऊंचे उछलते हैं, फीर नीचे गीरते हैं और इधर उधर परिभ्रमण करते. हैं. पूर्व कर्मोदय से उन के चित्त में जलन होने से अपने पूर्व कृतकों की निंदा करते हैं कि मैंने बहुत बुरा किया. यों पाप का पश्चाताप करते हैं. इस तरह रत्नप्रभादि नरक में उक्त प्रकार के प्राणातिपात रूप में पाप का आचरण कर और उस से चिक्कने कर्म का बंध कर परमाध कृत तथा परस्पर कृत और क्षेत्र जन्य वेदना से अती है। पीडित बनकर पाप के फल अनुभवते है. // 16 // आयुष्य पूर्ण हुए पीछे यहां प्रकाशक-राजारहादूर कालामुखदवसहायजी ज्वालाप्रसादजा *
SR No.600304
Book TitlePrashna Vyakaran Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmolakrushi Maharaj
PublisherRaja Bahadur Lala Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Jouhari
Publication Year
Total Pages240
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript & agam_prashnavyakaran
File Size25 MB
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