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________________ ल्लुण कण्णोः नासिका छिन्नहत्थपादा, असिकरकय तिक्ख कुंत परसुप्पहार फालिय वामीसं तच्छितं गमंगा कल 2 क्खारपरिसित्त गाढडझंतगंत्ता, कुंतग्गभिन्नजजरिय सम्बदेहा, विलालंति महीतले विमुणि अंगमंगा, तत्थय विगसूणग सियाल काकमज्जार सरभ दीविय विग्घ सद्दलसीह दप्पियसु खुहा अभिभूतेहि, णिचकालमणसिएहिं किं घोरा रसमाण भीमरूबेहि, अक्कमित्ता दढदाढा गाढडक कड्डियसुतिक्ख नहफालिय उद्धदेहा वित्थिप्पते समंतओ विमुक्त संधिबधणा वियं 4.Hदशमान प्रश्नव्याकरण सूत्र प्रथम-आश्राधार 420 पांग छदित करते हैं. उस पर अत्यंत ऊष्ण क्षार जैसा पानी का सिंचन करते हैं. इस दःख में वे अत्यंत दुःखित होते हैं. उन के शरीर में ज्वाला होती है. भाला के अग्र से शरीर भेदाने से संपूर्ण शरीर छिद्र-2 मय बन जाता है. वे दीन नैरयिक भूमिपर पंडकर जरित होते हैं और उन के सब अंगोपाग में रुघिर. नकलता है. वहां नरक में चित्ता, श्वान, शगाल, काक, बिल्ली, अपारद चित्रा. व्याघ्र, बादलसिंह मदोन्मच और क्षधा से पीडित भोजन में सदैव रहित घोर रैद्र क्रिया करनेवाले, विक्राल रूप बनानेवाले पशु अपने पांव में उन के शरीर लेकर दृढ , तीक्ष्ण दादों से काटते हैं, अति तीक्ष्ण नखों से शरीर है फाडते हैं, शरीर का चर्म उदीरते हैं, शरीर को दशदिशी में विखेरते हैं. उन के शरीर के बन्धन इस से है. शिथिल होजाते हैं. वे शरीर और बुद्धि से विकल बन जाते हैं. वैसे शरीर को कार दंक, गृद्ध, सायली, -440 मिनायव प्रवर अध्यन HAPA र शारद, चित्रा, व्याध जन सदैव रहित पशु अपने पांव
SR No.600304
Book TitlePrashna Vyakaran Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmolakrushi Maharaj
PublisherRaja Bahadur Lala Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Jouhari
Publication Year
Total Pages240
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript & agam_prashnavyakaran
File Size25 MB
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