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________________ 4. अनुवादक-बाल ब्रह्मचारी मुनि श्री अमोलक ऋषी ममंढिकर कयसचिहलगय मुमल धक्ककुल तोमर मूल लउडभिडिमलि सव्वल पट्टिस चम्मिट्ठ दुहण मुट्ठिय असिखेडग खग्ग चाव नाराय कृणग कप्पिणि वासि पर मुटक तिक्ख निम्मल अण्णेहिं एव मादिएहिं असुभेहि बेउविएहिं पहरणसतेहिं, .. अणुबंघतिव्ववेरा परोप्पर वेयणंउदीरति अभिइणं, तत्यमोग्गर पहार चुणिय मुसंढि संभगमहियदेवा, जंतोपीलण फुरंत कपिय केइत्थ सचम्मकाविगत्ता जिम्मूलु वैतरणी नदी है, कलंबुक पुष्प समान नप्त बलु के वन हैं, इममें प्रवेश करने से ही नरयिक भुंजा जाते हैं. ब मरोटे-गोखरु के वन, तीक्ष्ण कंटक क वन, ऐसे बन हैं. वहां पर तप्त किया हुवा लोहमय रथ में नैरयिकों को जोतकर तप्त किये हुवे विषप मार्ग में चलाते हैं. और जिम प्रकार शस्त्र से दुःख देते हैं सो कहते हैं अब शिष्य प्रश्न करता है कि तिमरी नरक नीचे कैसा शस्त्र है. उत्तर-पुद्गल, करवन, त्रिशूल, गंदा, शिल, चक्र, भाला, बाण, शूल, लकडी, भिंडपाल, पट्टा, चिपट', दुधारी, गुप्त, पोगर मुष्टि प्रमाण, तरवार, खड, धतष्य, तीर करना, कतरणी. वसोला, फामी, कुहाडी, यमब अतीव तीक्ष्ण निर्मल भलभलाट करते हुए अनेक प्रकार के खरात्र शस्त्र का वैक्रेय बनाकर और उससे सज्ज बनकर पूर्व भव के तीन और भाव मे उस्केराये हुए नैरयिक सन्मुख बनकर पहनी वेदना की उदीरना करते हैं. एकेक को मारते हैं, एक के प्रभार से मस्तक फल जैसे तूटा हैं, और जैसे बढाइ लकडा तरासता है वैसे ही उन के अंगो प्रकाशक राजाबहादुर लाला सुखदेवसहायनो कालाप्रमाद जी
SR No.600304
Book TitlePrashna Vyakaran Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmolakrushi Maharaj
PublisherRaja Bahadur Lala Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Jouhari
Publication Year
Total Pages240
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript & agam_prashnavyakaran
File Size25 MB
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