________________ - 44 दशमाङ्ग-प्रश्नव्याकाण सूत्र-प्रथम आश्रद्वार सीयलंति,वित्तूणय नरय पालातवियं तउयंसेदेति, कलसणं अंजलि, सुदंडगय त पदेसियं गमगा असुयपगल तपप्पुतत्था, च्छिण्णा तण्हाइयम्हे कलुणाणि जंग्मागा विप्पक्ख ना दिसोदिसिं,अताणा असरणा अणाहा अबंधवा बधुविप्पहुणा, विपलायतिय, मियाव वेगणं भयउध्विया घेत्तूणय बलापलायमाणाणं, मिरणकप महं विहांडत्तु लोहडंड हे कलकलणं वयणसि छुब्भति केइ जम्मकाइया हसंता // तेणय दज्झा संते रसंतिय अरे, इतनी मरे पर दया करो, मरे जैसे दीनपर कोप मत करो, मेरे श्व से का कंचन होता है, थोडीदेर के लिये छड दा, मैं मर रहा हूं में बड़ा दुःखी हूं और भी नरक के दुःख कहत मझं प्यास लग रही है. मुझे पानी पिलावो. ऐमा जब वे बोलने हैं तब वे यमदव कहते कि यह निर्मन शीतल पानी ले यों कह कर तप्त किया हुवा व अग्नि से गाला हुवा मांस का रम उम की अंजली में डालते हैं, वे पानी के भ्रम से उसे लेते है, परंतु जाजल्यमान मीसे का रम देखते ही भयभीत बनजाते हैं. सब अंगोपांग धूजने लगते हैं, आंखों से अश्रु झरते हैं और कहते हैं कि मुझे अब नषा नहीं है. मुझ पानी नहीं गेना है, यों करुणा जनक विलाप करता हुवा दशादिशि में भगना रहना है. वहां उभे दुःख से छोडानेवाला कोई नहीं है. वह अनाथ अशरण बनकर विशेष भगता है, जैसे सिंह को देखकर भयभीत बना हुवा मृग वन में भगता है इस प्रकार भंगते हुए को वे यम + हिना नामक प्रथगन HPP 41 !