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________________ है अनुवादक-बाल ब्रह्मचारीमान श्री अमोलक ऋषिजी. भीमाइं विस्सराई रोवंतिय कलुणगाइ पारेवयगाव एवं पलिवित विलाव कलणो कंदिय बह- .: / रुन्नरुदिय महोपरिदेवि निरयपाल रुदिय सोपरिदेवि तरुद्धबद्धकारवसंकुलो,णिसट्टारसिय भणिय कवियउकवितणिरयपाल तज्जियगिह कमप्पहाछिदभिंद उप्पाडेह उक्खिणाहिर * काहि विकताहिय भुजोभुजोहण विहण वित्थु भोत्थुव, आकविकटु // किंणजपेसि ... बलात्कारसे पकडते हैं. निर्दयी बनकर लोहदंडसे उसका मुख फ.डकर कलकलाट करता (उकलता) ऊष्ण सीसे का रस उस के मुखमें डालते हैं. वह नैरयिक ऐसा अत्यंत दुःख से वासित बनकर बिलाप करता है तब परमाध िहमत हैं, चिडाते हैं. सीसे के ऊष्ण रम से प्रज्वलित बने हुए नैरयिक जीव करुणाजनक स्वरमा रुदन करते हैं और घायल हुए कब्तर जैसे तडफडते हैं. गों आलाप विलाप व दयाजनक आक्रंद करते हैं सब निर्दयी परमा उन की तर्जना, ताडना करते हैं, अति भयंकर शब्द से उन को त्रास उत्पन्न करते है. इस तरह दुःख से पीडित व आकुल व्याकुल बने हुने नैरयिक में से कितनेक का व्यक्त वचन और कितनेक का अध्यक्त वचन मुनकर वे परमाधर्मा पुनः कुपित होते हैं और लकडी आदि के प्रहार बड जोर से करते हैं. स्वग में छेदन करते हैं, भाले से भेदते हैं, चक्षुओं वाहिर नीकाल देते हैं, बांह प्रमुख उपाङ्ग काटते हैं, कृत विकृत करते हैं, पुनः मारते हैं, विशेष प्रकार से गलात्थादेकर का 7 मुक्की लगकर निकालते हैं, फीर खीचकर लाते हैं, उने उठाते हैं, नीच षटकते हैं, और कहते हैं कि काशक-राजाबहादुर लालाखदेवसहायना बाळाप्रसादजी.
SR No.600304
Book TitlePrashna Vyakaran Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmolakrushi Maharaj
PublisherRaja Bahadur Lala Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Jouhari
Publication Year
Total Pages240
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript & agam_prashnavyakaran
File Size25 MB
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