________________ + पयण, पउलण, तवग तलण, भट्ठभजणाणिय लोहकडाहं कढणाणिय, कोट्टबलिकरण कोणाणिय सामलि तिक्खग्ग लोह कटक अभिसरण पसारणाणि,फालण विदालणाणिय अवकोडग बधणाणि,लट्ठिसय तालगाणिय,गलग बलुल्लवणाणिय, मूलग्गभय णाणिय, आयस पवंचणाणिय, खिसणविमाण णाणिय विघुट पणिज्जणाणिय, वज्झसय मांतिकाणिय एवं ते पुवकम्मकय संचउववताणिरयग्गि महग्गि संपलिता गाढ दुक्खं, महन्भयं कक्कसं. शिष्य प्रश्न करता है कि वहां के जीव कैसी वेदना का अनुभव करते हैं ? उत्तर-वहां ले.हपय कुंमी ऊँटकी गरदन, तिजार के डेडे, सीदड, और डब्बे जैसी हैं इन में रयिक जीवों को चावल जैसे पचावे Ft. शाक मे गंधते हैं, कडाइ में तलते हैं, भट्टा में भूनते हैं. तिल की तरह घाणी में पीलते हैं, मुद्गर से कूटने हैं, शिलापर पछाड़ते हैं, शाल्मली वृक्ष नीचे बैठाकर लोहमय कंटक जैसे पत्र से छेदन करते हैं, लोहमय केट की लता से भेदकर इधर उधर खींचते हैं, कुहाडे से लक्कड जैसे फोडते हैं, चक्की में दाने का तरह पीमने हैं, हाथ पांव ग्रीवा सब एकत्रित कर बंधते हैं, लकार्ड के सेंकडों प्रहार से कूटते हैं, चाबूक कोरड मे ताडन करते हैं, क्षार में मालते हैं बलात्कार से शरीर विलूरते हैं, वृक्षपर उलटे लटकाते . शूली में परोते हैं. वहां के यमदेव ऐसा कहते हैं कि तुमने शास्त्र के अर्थ विपरीत करके लोगों को ठगे, अश्वा लोगों को उलटा मार्ग बतलाया, ऐमा काकर उन की जिव्हा का छेदन करते हैं, और प्रश्नव्याकरण मूत्र-प्रथम-अश्रद्वार 48 was हिंसा नापक प्रथम अध्ययन .दश 4 w +8+. .